हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को एकादशी व्रत रखा जाता है और इस तरह से पूरे साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं. सभी एकादशियों में निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन और पुण्य फलदायी माना जाता है. निर्जला एकादशी व्रत के नियमों का श्रद्धा भाव से पालन करने पर सभी 24 एकादशी व्रतों का फल मिल जाता है.

निर्जला एकादशी पर पूजा-पाठ और व्रत के साथ ही कई कठोर नियमों का पालन भी करना पड़ता है, जिस कारण ये व्रत अधिक कष्टकारी मानी जाती है. आइये जानते हैं निर्जला एकादशी व्रत के वो 5 नियम जिस कारण यह व्रत अन्य एकादशी व्रतों मे माना जाता है सबसे कठिन.

निर्जला एकादशी में अन्न के साथ ही जल का भी त्याग करना होता है, जिस कारण इसका नाम ‘निर्जला एकादशी’ पड़ा निर्जला यानी बिना जल के. व्रत के दौरान पूरे दिन जल की बूंद भी ग्रहण नहीं करनी होती, वरना व्रत खंडित हो सकता है.

अन्य एकादशी व्रतों में फलाहार या जलाहार के नियम होते हैं. लेकिन निर्जला एकादशी ऐसा व्रत है, जिसमें अनाज, फल या फलों के जूस का सेवन भी पूर्ण रूप से वर्जित होता है.

निर्जला एकादशी का व्रत तब रखा जाता है जब ज्येष्ठ माह की प्रचंड गर्मी पड़ती है. ऐसे में बिना अन्न-जल ग्रहण किए यह व्रत रखना व्रतधारियों के लिए शारीरिक रूप से अधिक कष्टकारी होता है

निर्जला एकादशी में अन्न-जल का त्याग करने के साथ ही मन और वचन से भी शुद्ध रखना पड़ता है. इस दिन किसी के साथ बुरा व्यवहार न करें. वाणी पर संयम रखें, वाद-विवाद से दूर रहें और व्यर्थ की बातें किसी से न कहें. इसलिए निर्जला एकादशी को आत्म संयम का प्रतीक माना जाता है.

निर्जला एकादशी के दिन व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. इसलिए इस व्रत को आत्म-नियंत्रण का भी प्रतीक माना गया है. इस दिन रात में सोने के बजाय रात्रि जागरण करना चाहिए और भजन-कीर्तन में समय व्यतीत करना चाहिए. इससे प्रभु की कृपा प्राप्त होती है.
Published at : 02 Jun 2025 07:25 AM (IST)
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