Narasimha Jayanti 2025: भक्तों की पुकार सुनते हैं भगवान, नरसिंह अवतार पर इसका प्रमाण

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Narasimha Jayanti 2025: पंचांग के अनुसार हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरसिंह जयंती मनाई जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने नरसिंह अवातर लिया था. इसे नरसिंह चतुर्दशी (Narasimha Chaturdashi) के नाम से भी जाना जाता है. इस साल नरसिंह जयंती आज रविवार 11 मई 2025 को है.

नरसिंह जयंती पर भगवान नरसिंह की पूजा-अराधना की जाती है. बता दें कि भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के कई अवतारों में नरसिंह चौथा अवतार है, जिसमें उनका रूप आधा सिंह और आधा मानव का है. भगवान ने यह अवतार भक्त प्रह्लाद (bhakt prahlad) की रक्षा के लिए लिया था, जोकि इस बात का भी प्रमाण है कि, भक्त की भक्ति में अगर श्रद्धा और सच्चाई हो तो ईश्वर प्रकट होकर जरूर रक्षा करते हैं. आइए जानते हैं नरसिंह अवतार की कथा.

नरसिंह अवतार की कथा (Narasimha Jayanti 2025 Katha in Hindi)

भगवान विष्णु के नरसिंह अवातर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस था, जिसने अपनी तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर यह वरदान प्राप्त किया था कि किसी भी अस्त्र से उसकी मृत्यु असंभव है. उसे ना ही कोई अस्त्र, न ही शस्त्र,  ना ही दिन, ना ही रात, न बाहर, ना ही घर में,  न पृथ्वी और ना ही आकाश मार सकता है.

लेकिन इस वरदान को पाकर हिरण्यकश्यप ने इसका गलत फायदा उठाया और लोगों को परेशान करने लगा. वह लोगों से कहता था कि उसकी पूजा करे. यहां तक कि हिरण्यकश्यप तीनों लोकों पर भी अपना आधिपत्य जमाना चाहता था. लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था और पूजा-अर्चना करता था. हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को विष्णु जी की भक्ति करने के लिए कई बार मना किया और हर तरह से यह कोशिश की कि प्रह्लाद भगवान की अराधना न कर सके. लेकिन प्रह्लाद ने अपने पिता की एक नहीं सुनी.

तब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को ही मारने की साजिश रची, जोकि भगवान विष्णु की कृपा से नाकाम रही और विष्णु भक्त प्रह्लाद बच गया. इस पर हिरण्यकश्यप गुस्से से आग-बबूला हो गया. एक बार प्रयास असफल होने के बाद उसने दोबारा अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने की कोशिश की. तब आखिरकार भक्त की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया.

वैशाख शुक्ल की चतुर्दशी तिथि पर भगवान नरसिंह खंभे से अवतरित हुए. उन्होंने मुख्य दरवाजे के बीच हिरण्यकश्यप को पैर पर लेटा कर अपने नाखूनों की मदद से उसका का वध कर दिया. इस तरह से नरसिंह अवातर लेकर भगवान ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की, जिस कारण हर साल वैशाख शुक्ल की चतुर्दशी पर नरसिंह जयंती मनाई जाती है और भगवान विष्णु के इस अवतार की पूजा-अराधना की जाती है.

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