नगरवधू: जिसे इतिहास ने वेश्या कहा, धर्म ने देवी माना!

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नगरवधू: जिसे इतिहास ने वेश्या कहा, धर्म ने देवी माना!

‘नगरवधू’ शब्द सुनते ही आधुनिक समाज में एक नकारात्मक छवि उभरती है, लेकिन प्राचीन भारत में यह एक प्रतिष्ठित उपाधि मानी जाती थी. यह परंपरा केवल नृत्य या गायन तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें सौंदर्य, विद्वत्ता, कला और संस्कृति का उत्कृष्ट संगम होता था. धर्म और शास्त्रों में नगरवधू की भूमिका को किस प्रकार देखा गया, आइए जानते हैं.

नगरवधू किसे कहा जाता था? (Nagarvadhu Kise Kahate Hain)
‘नगरवधू’ का शाब्दिक अर्थ है, ‘नगर की वधू’ यानि किसी नगर की सर्वश्रेष्ठ नारी, जिसे समाज ने कला, संस्कृति और मनोरंजन के क्षेत्र में अद्वितीय मानकर सम्मानित किया हो. यह कोई सामान्य स्त्री नहीं होती थी; बल्कि वह नृत्य, संगीत, काव्य और रूप की दृष्टि से सुंदर और श्रेष्ठ होती थी.

नगरवधू विवाह नहीं करती थी, वह समाज की धरोहर मानी जाती थी. वह राजा से लेकर आम जन तक सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध होती थी, पर केवल कला और सौंदर्य के रसास्वादन के लिए, न कि केवल कामुक इच्छाओं की पूर्ति के लिए.

नगरवधु को लेकर धार्मिक और पौराणिक संदर्भ क्या कहते हैं?

  • महाभारत में नगरवधू का उल्लेख: महाभारत में ‘अंबिका’ और ‘अंबालिका’ की बहन ‘अमबा’ की कथा में एक नगरवधू बनने का संकेत मिलता है. जब अमबा को विवाह योग्य नहीं माना गया, तो वह स्वतंत्र रूप से जीवन जीती रही और उसने अनेक लोगों को प्रभावित किया.
  • वैशाली की अति प्रसिद्ध नगरवधू-आम्रपाली: स्रोत: ‘महावंश’ (बौद्ध ग्रंथ) और ‘जिनचरित’ में आम्रपाली का विस्तृत उल्लेख मिलता है. आम्रपाली वैशाली गणराज्य की नगरवधू थी और अत्यंत रूपवती, बुद्धिमान और नृत्यकला में पारंगत थी. भगवान महात्मा बुद्ध स्वयं आम्रपाली के आम्रोद्यान (बाग) में ठहरे थे. बाद में आम्रपाली बुद्ध से प्रभावित होकर भिक्षुणी बन गई थीं.

यह घटना दर्शाती है कि नगरवधू होना कोई अधार्मिक कार्य नहीं था. समाज उन्हें कला की देवी की भांति सम्मान देता था, और उन्होंने भी आध्यात्मिक मार्ग अपनाने में संकोच नहीं किया.

चाणक्य ने क्या कहा?
कौटिल्य जिन्हें चाणक्य भी कहा जाता है वे अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में नगरवधुओं के लिए अलग नियम और कर व्यवस्था निर्धारित का वर्णन मिलता है. इससे स्पष्ट है कि यह कोई छुपा हुआ या निंदनीय कार्य नहीं था, बल्कि संगठित सामाजिक संरचना का हिस्सा था.

नाट्यशास्त्र (भरतमुनि): ‘नाट्यशास्त्र’ में ऐसी स्त्रियों का वर्णन है जो नृत्य, अभिनय और गायन में माहिर होती थीं. नगरवधू भी इन्हीं कलाओं में दक्ष होती थी.

नगरवधू और धार्मिक दृष्टिकोण:

  • हिंदू धर्म में: कला, विशेषकर नृत्य और संगीत, को देवी सरस्वती और नटराज शिव से जोड़ा जाता है. कुछ विद्वानों का मत है कि नगरवधू इन कलाओं की पोषक थी, इसलिए उन्हें धर्म विरोधी कहना भी उचित नहीं है.
  • बौद्ध धर्म में: आम्रपाली का जीवन इस बात का प्रमाण है कि बौद्ध धर्म ने सभी वर्गों को अपनाया, चाहे वह नगरवधू हो या राजा. बुद्ध ने आम्रपाली को भिक्षुणी बनने की अनुमति दी, जो इस बात का प्रमाण है कि नगरवधू भी आध्यात्मिक उन्नति कर सकती है.

कुछ विद्वानों का मानना है कि आज ‘नगरवधू’ शब्द को एक उपेक्षित और अपमानजनक संदर्भ में प्रयोग होता है, जो कि सांस्कृतिक अनभिज्ञता का परिणाम है. हमें यह समझना होगा कि किसी भी परंपरा को उसके ऐतिहासिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में समझना चाहिए. ‘नगरवधू’ की परंपरा धर्म के विरुद्ध नहीं थी, बल्कि यह समाज के सांस्कृतिक विकास का हिस्सा थी. चाहे वह आम्रपाली हो या अन्य नगरवधुएं, इन स्त्रियों ने अपने युग में समाज को कला, सौंदर्य और वैचारिक स्वतंत्रता का एक नया आयाम दिया. धर्मों ने भी इन्हें अस्वीकार नहीं किया, बल्कि सम्मान के साथ स्वीकारा. महाभारत, बौद्ध ग्रंथ जैसे धार्मिक ग्रंथ भी इस बात की पुष्टि करते हैं.

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. क्या नगरवधू वेश्या होती थी?
उत्तर: नहीं, नगरवधू एक सांस्कृतिक संस्था थी. वह नृत्य, संगीत और कला में दक्ष होती थी और समाज द्वारा सम्मानित की जाती थी.

Q2. आम्रपाली कौन थी?
उत्तर: आम्रपाली वैशाली की प्रसिद्ध नगरवधू थी, जिसने बाद में बौद्ध धर्म अपनाया और भिक्षुणी बन गईं.

Q3. क्या नगरवधू का धर्म से संबंध था?
उत्तर: हां, नगरवधुओं को धार्मिक ग्रंथों में नकारा नहीं गया है. बौद्ध और हिंदू धर्म ने उन्हें सम्मानित रूप में स्वीकार किया है.

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