मैटरनल डिप्रेशन क्या है? किन कारणों से महिलाएं हो जाती हैं इस बीमारी का शिकार

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मैटरनल डिप्रेशन क्या है? किन कारणों से महिलाएं हो जाती हैं इस बीमारी का शिकार

मां बनना किसी भी महिला के लिए एक सुखद एहसास होता है लेकिन मां बनने के दौरान या उसके बाद मां किन पुरेशानी से गुजरती है उसपर शायद ही कोई बात करना पसंद करता है. बच्चे के जन्म से पहले या जन्म के बाद एक महिला के शरीर में कई सारे हार्मोनल चेंजेज होते हैं. जिसके कारण उनकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ दोनों को प्रभावित करता है. जिसे अक्सर लोग मामूली बात सुनकर अनदेखा कर देते हैं.

बच्चे के जन्म के बाद कई सारी महिलाओं को कई सारी मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. सिर्फ इतना ही नहीं कुछ महिलाएं बच्चे के जन्म के बाद भी कई सारी बीमारी से गुजरती हैं.जैसे हाई बीपी, डायबिटीज, थायरॉइड और दूसरी समस्याएं. बच्चे के जन्म के बाद जिन महिलाओं का केयर ठीक तरीके से नहीं होता है वह अक्सर डिप्रेशन का शिकार होती हैं. 

बच्चे के जन्म से पहले और बाद में एक मां को क्यों है केयर की जरूरत?

कई महिलाएं बच्चा होने के बाद डिप्रेशन का अनुभव इसलिए करती हैं क्योंकि उनका बच्चे होने के दौरान या बाद में सही से केयर नहीं हो पाता है.  बच्चा और मां दोनों एकदम सही रहे इसलिए उनके अच्छे से केयर जरूरी है. इसमें आपके ओबी-जीवाईएन डॉक्टर से रेगुलर जांच और ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए, नशीली दवाओं, शराब या निकोटीन जैसे पदार्थों से बचना चाहिए. मां और भ्रूण दोनों की भलाई के लिए बेहद जरूरी है. 

मां की देखभाल केवल बच्चे के जन्म से पहले ही नहीं बल्कि बाद में भी बेहद जरूरी होता है. प्रसवोत्तर देखभाल भी प्रसवपूर्व देखभाल जितनी ही महत्वपूर्ण है. यह सुनिश्चित करने के बाद कि बच्चा स्वस्थ है. मां पर ध्यान दिया जाना चाहिए और स्वस्थ और हेल्दी डाइट की देखभाल की जानी चाहिए. मां और बच्चे की सभी ज़रूरतों को किसी प्रियजन या चिकित्सा पेशेवर द्वारा पूरा किया जाना चाहिए और डॉक्टर की सलाह पर कुछ हल्का व्यायाम करना चाहिए.

भारत में, 22% नई माताओं को प्रसवोत्तर अवसाद (पीपीडी) का कोई न कोई रूप अनुभव होता है, जिसका अर्थ है कि बहुत सी माताएं बच्चे के जन्म के बाद मूड में बदलाव से गुज़रती हैं. जिसके परिणामस्वरूप वे दुखी या चिंतित रहती हैं. ऐसा कई कारणों से हो सकता है, लेकिन ज़्यादातर मामलों में यह अनुमान लगाया जाता है कि प्रसव के बाद फर्टिलिटी हार्मोन में बदलाव होता है. पीपीडी को डॉक्टर के विवेक पर गैर-औषधीय उपचार (प्यार और देखभाल), परामर्श के साथ-साथ अवसादरोधी दवाओं से प्रबंधित किया जा सकता है.

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