महाभारत काल से जुड़े महादेव के इस मंदिर का राज खोलेन में साइंस भी हुई फेल, अश्वत्थामा करते हैं

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Khereshwar Mandir: कानपुर शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर शिवराजपुर क्षेत्र में स्थित ये शिव मंदिर खेरेश्वर जहां महाभारत काल से आज तक प्रतिदिन सबसे पहली पूजा अश्वत्थामा करते है. मंदिर के कपाट खुलने से पहले शिवलिंग पर अद्भुत फूल और अन्य पूजन सामग्री चढ़े होते हैं. महाशिवरात्रि पर्व में श्रद्धालुओं का एक बड़ा हुजूम खेरेश्वर मंदिर में दर्शन करने पहुंचता है. साथ ही दूर-दूर के शहरों से भी यहां श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.

इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है.  महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर वैसे तो सभी शिवालयों में श्रद्धालुओं और भक्तों भीड़ दिखाई देती है. इसी के साथ कानपुर के शिवराजपुर क्षेत्र में बने इस खेरेश्वर मंदिर में भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. जानकारों की माने तो यह मंदिर लगभग 5000 साल पुराना है. यह मंदिर महाभारत काल के समय से ही यहां स्थापित है. मान्यता है कि आज भी  यहां रोजाना अश्वत्थामा पूजा करने आते हैं.

हर रोज अश्वत्थामा करते हैं प्रथम पूजा

लोगों को कहना है कि कई बार यहां कैमरे लगाए गए, कई टीवी चैनल और न्यूज़ चैनल ने यहां पर इस राज को खोलने की कोशिश की. यहां तक की साइंस भी इस अनोखे और अद्भुत रहस्य से आज तक अनजान है, क्योंकि यहां पर ब्रह्म मुहूर्त में ही शिव मंदिर के पट खुलने से पहले पूजा-अर्चना करी हुई मिलती है. शिवलिंग के पास अद्भुत अनोखे पुष्प अर्पित होते हैं, अगरबत्ती, चंदन, शिवलिंग पर लगा होता है. लेकिन आज तक इस चमत्कार को देखने वाला कोई भी नहीं रहा.

अश्वत्थामा को श्रीकृष्ण से मिला था श्राप  

महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने पांडवों के पुत्रों का वध कर दिया था. इसके बाद भीम ने अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि को निकाल कर उसे शक्तिहीन बना दिया था. महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया था कि वह धरती पर तब तक जीवित रहेगा, जब तक स्वयं महादेव उसके पापों से मुक्ति नहीं दे देते. माना जाता है कि तब से लेकर आज तक धरती पर अश्वत्थामा के जीवित होने के कई संकेत मिले हैं और इन्हीं तमाम संकेत में कानपुर का खेरेश्वर मंदिर भी शामिल है. इसी खेरेश्वर मंदिर में जब देर रात मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं तो सुबह आने वाले श्रद्धालुओं से पहले इस मंदिर के शिवलिंग में पूजा अर्चना हो चुकी होती है और यह मान्यता  है कि यह पूजा अर्चना खुद अश्वत्थामा यहां आकर करते हैं और रोजाना यहां पर पूजा अर्चना के दृश्य भी दिखाई देते हैं.

महाभारत और द्वापार युग से जुड़ा है इतिहास

अश्वत्थामा का कानपुर के खेरेश्वर मंदिर से यह जुड़ाव कई कहानियां और मान्यताएं श्रद्धालुओं और भक्तों के लिए आश्चर्यचकित है. लेकिन जहां पर विज्ञान फेल हो जाता है वहां आध्यात्मिक आस्था मजबूत हो जाती है.  महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर इस शिव मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु दूर दराज से दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं और ऐसा माना जाता है कि यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. मंदिर के महंत और श्रद्धालुओं की बात माने तो महाभारत काल में कौरव और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने स्वयं इस खेरेश्वर मंदिर में तपस्या की थी. इस मंदिर का इतिहास द्वापर युग से जुड़ा है और इसी इतिहास के चलते इस मंदिर से लोगों की आस्था भी अटूट है, यहां पर शिवलिंग के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को अश्वत्थामा के नाम से भी पूजा अर्चना करनी होती है तब जाकर उनकी हर मुराद पूरी होती है.

अजर-अमर है अश्वत्थामा 

ऐसे अलौकिक मंदिर की आस्था श्रद्धालुओं के दिल में हर रोज बढ़ती जा रही है. शहर से कई किलोमीटर दूर होने के बावजूद आज भी यहां अलग-अलग शहरों से श्रद्धालुओं का आना जारी रहता है और महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर तो यहां भारी भीड़ देखने लायक होती है. श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां पर मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. पुराणों और ग्रंथों की बात माने तो आज भी अश्वत्थामा अजर अमर है और धरती लोक पर है.

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