Mahakumbh 2025 Akhada: आमतौर पर अखाड़े संतों की उस सेना या संगठन को कहा जाता है जोकि धर्म रक्षा के लिए पारंपरिक रूप से गठित या एकत्रित किए जाते हैं. अपनी धर्म ध्वजा ऊंची रखने और विधर्मियों से अपने धर्म, धर्मस्थल, धर्मग्रंथ, संस्कृति, परंपरा आदि की रक्षा के लिए ऐसे सेनाओं को मिलाकर प्राचीन समय में संतों ने एक सेना का संगठन किया था. यही सेना आज अखाड़े के रूप में विद्यमान है.
अखाड़े की सेना सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं. कालांतर में आदि शंकराचार्य के आविर्भाव काल 778 से 820 के बीच देश के चार कोनों में चार शंकर मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की गई. बाद में इन्हीं दसनामी सन्यासियों ने कई अखाड़े प्रसिद्ध हुए, जिनमें 7 पंचायती अखाड़े आज भी अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत कार्यरत हैं.
विशाल हुई अखाड़े की सेना
सनातन धर्म के प्रति जीवन समर्पित करने वाले लोग सन्यासियों की सेना अब और भी विशाल हो चुकी है. मंगलवार मध्यरात्रि सेना में कुल 8,495 नए नागा संन्यासी जुड़े हैं, जिनमें 2,300 महिलाएं भी शामिल हैं. धर्मध्वज के नीचे अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर ने इन्हें दीक्षा दी. साथ ही गायत्री व अवधूत मंत्र देकर अखाड़े की परंपरा और नीति-नियम के बारे में बताया. दीक्षा लेने के बाद अब नागा सेना नियमित इस मंत्र का जप करेंगे.
10 तंग तोड़ा (नागा संन्यासी)
किस अखाड़े में कितने नागा संन्यासी और संन्यासिनी |
जूना अखाड़ा | 4500 संन्यासी, 2150 संन्यासिनी |
निरंजनी अखाड़ा | 1100 संन्यासी, 150 संन्यासिनी |
महानिर्वाणी अखाड़ा | 250 संन्यासी |
अटल अखाड़ा | 85 संन्यासी |
आवाहन अखाड़ा | 150 संन्यासी |
बड़ा उदासीन अखाड़ा | 10 तंग तोड़ा (नागा संन्यासी) |
कुंभ-महाकुंभ में नागा क्यों बनते हैं?
कुंभ-महाकुंभ में अखाड़े में नए नागा संन्यासी बनाए जाते हैं. इस बार भी महाकुंभ में मकर संक्रांति के बाद नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया शुरुआत हो हुई जोकि निरंतर चल रही है. संन्यास लेने वालों में महिला और पुरुष को मंत्र उच्चारण के बीच 108 बार डुबकी लगवाकर पिंडदान कराया जाता है और उन्हें नया नाम देकर दीक्षित किया जाता है. दीक्षा मिलने के बाद वे अखाड़े के शिविर में रहकर भजन-पूजन में लीन रहते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों कुंभ-महाकुंभ में बनाए जाते हैं नए संन्यासी.
दरअसल कुंभ और महाकुंभ के समय ही दीक्षा देने की परंपरा की पीछे कई वजह है. इस समय लाखों साधु-संत और श्रद्धालु एकत्रित होते हैं. यह साधु और विभिन्न अखाड़ों के लिए एक विशेष अवधि होती है, जिसमें वे अपने अनुयायियों को दीक्षा देते हैं. नागा दीक्षा के लिए कुंभ-महाकुंभ को आदर्श समय माना जाता है. वहीं अवधूत बनने वालों को 3-6 वर्ष तक समर्पित भाव से जुड़कर काम करना होता है. इस समयावधि में खरा उतरने पर कुंभ के दौरान दिगंबर की उपाधि भी दी जाती है. दिगंबर बनने के बाद में ये अखाड़ा के विभिन्न अंग बन जाते हैं.
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