Mahakal Mandir Fire: मध्यप्रेदश के उज्जैन का महाकाल मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है, यहां मंदिर परिसर में भीषण आग लग गई है हालांकि भक्त और मंदिर में किसी तरह की हानि नहीं हुई है. महाकालेश्वर मंदिर की महिमा का विभिन्न पुराणों में विशद वर्णन किया गया है. यहां का ज्योतिर्लिंग दक्षिणमूर्ति स्वयंभू है जो स्वयं में ही शक्ति प्राप्त करता है जबकि अन्य मंदिरों में लिंग स्थापित हैं.
मंदिर में विभिन्न देवताओं के 100 से अधिक छोटे मंदिर हैं. मंदिर परिसर के अंदर एक बड़ा जल निकाय कोटि तीर्थ है जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें दिव्य जल है और भक्तों द्वारा यहां डुबकी लगाने की उम्मीद की जाती है. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास बड़ा रोचक रहा है, आइए जानें इस ज्योतिर्लिंग का महत्व और इतिहास.
महाकाल मंदिर का इतिहास
महाकालेश्वर मंदिर सदियों से यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र है.ये 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है. मुगलों और ब्रिटिश हुकूमत के आधीन रहने के बाद भी देश के इस पावन स्थल ने अपनी पुरातन पहचान को नहीं खोया. अवंतिकापुरी के राजा विक्रमादित्य बाबा महाकाल के भक्त थे और भगवान शिव के ही आशीष से उन्होंने यहां करीब 132 सालों तक शासन किया.
1235 में महाकालेश्वर मंदिर को दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था. आक्रमण के दौर में महाकाल मंदिर के गर्भगृह में स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को आक्रांताओं से सुरक्षित बचाने के लिए करीब 550 सालों तक पास में ही बने एक कुएं में रखा गया था.
महाकाल ज्योतिर्लिंग का महत्व
‘आकाशे तारकं लिंगम पाताले हाटकेश्वरम ।
भूलोके च महाकाल लिंगत्रय नमोस्तुते ।।
अर्थात- देवताओं की आराधना के लिए आकाश में तारक ज्योतिर्लिंग, महादैत्यों की आराधना के पाताल में हाटकेश्वर तथा पृथ्वी वासियों की समस्त मनोकानाएं पूर्ण करने के लिए उज्जयिनी में श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विद्यमान हैं.
भस्म का श्रृंगार है खास
महादेव श्रृंगार के रूप में भस्म और नाग धारण करते हैं. महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती की परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है. भस्म शिवजी को चढ़ाने का अर्थ ये है कि सृष्टि समाप्त होने के बाद सबकुछ शिवजी में विलीन हो जाएगा. यहां की भस्मआरती विश्वभर में प्रसिद्ध है.
शिवपुराण के अनुसार भस्म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बैर के पेड़ की लकडि़यों को एक साथ जलाया जाता है. मंत्रोच्चारण किए जाते हैं. इन चीजों को जलाने पर जो भस्म मिलती है, उसे कपड़े से छाना जाता है. इस प्रकार तैयारी की गई भस्म को शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है.
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