Kedarnath: केदारनाथ हिमालय की गोद में बसे पवित्र धाम को ‘बारह ज्योतिर्लिंगों’ में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए यहां आते हैं, लेकिन एक सवाल वर्षों से भक्तों और विद्वानों के मन में गूंजता रहा है, क्या केदारनाथ में शिवलिंग की पूजा होती है या स्वयं भगवान शिव ‘ज्योति रूप’ में यहां विराजमान हैं?
शास्त्रों, पुराणों और स्थानीय लोककथाओं में ऐसा उल्लेख मिलता है कि केदारनाथ में जो पिंड के आकार की शिला पूजी जाती है, वह पारंपरिक शिवलिंग नहीं बल्कि शिव के ज्योतिर्मय स्वरूप का प्रतीक है. स्कंद पुराण और कुछ तांत्रिक ग्रंथों में इसका रहस्य विस्तार से बताया गया है.
इस रहस्य को जानने से पहले यह समझना भी अति आवश्यक है कि ‘ज्योतिर्लिंग’ शब्द केवल आकार नहीं, बल्कि आदिशक्ति के स्वयं प्रकट होने का संकेत है, और केदारनाथ, इसी दिव्यता का केंद्र माना जाता है. केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई 2025 को खुलने वाले हैं.
शिव का ये धाम पाप मुक्ति का केंद्र बताया जाता है. केदारनाथ की महीमा का वर्णन स्कंद पुराण में है. केदारनाथ धाम के उस रहस्य को जानते हैं जो इस दिव्य स्थान को सिर्फ एक तीर्थ नहीं, बल्कि देवताओं के बीच भी इसे सबसे रहस्यमय धाम बनाता है.
स्कंद पुराण में केदारनाथ का महत्व
शिव जी के इस धाम का इतिहास भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण, पांडव और आदिगुरु शंकराचार्य से जुड़ा है. स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में केदारनाथ धाम को भगवान शंकर का आरामगाह बताया गया है. कहा गया है कि इस स्थान पर भगवान शिव विश्राम करते हैं.
केदारखंड में कहा गया है कि, ‘अकृत्वा दर्शनम् वैश्वय केदारस्याघनाशिन:, यो गच्छेद् बदरी तस्य यात्रा निष्फलताम् व्रजेत्’ अर्थात् बिना केदारनाथ भगवान के दर्शन किए यदि कोई बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है तो उसकी यात्रा व्यर्थ हो जाती है.
‘स्कंद पुराण’ में भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं, ‘हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं. मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है. यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भू-स्वर्ग के समान है.’
केदारनाथ में ज्योति रूप में शिव
ज्योतिर्लिंग का अर्थ है भगवान शिव का ज्योति के रूप में प्रकट होना. शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंग हैं, मान्यता है कि शिव जी ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं, इस वजह से इन 12 धामों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है. वहीं शिवलिंग मनुष्य के जरिए स्थापित किए जाते हैं, कुछ स्वयंभू भी होते हैं. कहा जाता है कि जहां-जहां ज्योतिर्लिंग हैं, वहां भगवान शिव ने स्वयं दर्शन दिए हैं और वहां एक ज्योति के रूप में उत्पन्न हुए थे.
अद्भत देवभक्ति का केंद्र केदारनाथ
केदारनाथ में पांडवों ने पापों से मुक्ति पाई थी. हिंदू मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति जीवन में एक बार केदारनाथ मंदिर की यात्रा कर लेता है उसे प्रकृति के जीवन मरण के खेल से मुक्ति मिल जाती है. उस पुन गर्भ में आना नहीं पड़ता , वहीं जो मनुष्य केदारनाथ जेयोतिलिंग की भी पूजा कर वहाँ मौजूद जल पी लेता है उसका भी पुनर्जन्म नहीं होता. उसे एक ही जीवन मिलता है उसी में उच्चतम काम करता है.
केदारनाथ का पांडवों से संबंध
पौराणिक कथाओं में इस बारे में बताया गया है कि भगवान शिव के द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से केदारनाथ की खोज सबसे पहले पांडवों ने की थी. महाभारत युद्ध खत्म होने पर पांडवों ने परिवार और अपने ही गौत्र वालों की हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए केदारनाथ के दर्शन करना चाहा लेकिन शिव ने उन्हें दर्शन नहीं दिए और अंतर्ध्यान हो गए. पांडवों ने हार नहीं मानी और शिव की खोज में केदार पहुंच गए.
भगवान शंकर गुप्तकाशी में अन्तर्धान हो गए उन्होंने एक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले. पांडवों को संदेह हो गया था. भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए. सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए. भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा. तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया.
भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हुए. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को हत्या के पाप मुक्त कर दिया. पांडवों ने भगवान से प्रार्थना की की वे इसी धड़ रूप में यहां रहें. शंकर भगवान ने तथास्तु कहा और केदार ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा के लिए यहां विराजमान हो गए.
वांडवों के वंशज जनमेजय ने यहां केदारनाथ मंदिर में नींव रखी थी. उसके बाद आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. उसके बाद यहां आदिकाल से भगवान शिव की आराधना होती आ रही है.
केदारनाथ मंदिर की ‘ज्योति’ का रहस्य
शीत ऋतु में केदारनाथ मंदिर का द्वार बंद कर दिया जाता है और एक दीपक 6 महीने तक जलता रहता है. यह परंपरा केदारनाथ मंदिर के अद्भुत रहस्यों में से एक है. जब 6 महीने बाद मंदिर के कपाट फिर से खोले जाते हैं, तो दीपक अभी भी जल रहा होता है, भक्तों के लिए ये आज भी रहस्य बना हुआ है क्या यहां ज्योति रूप में शिव जी उपस्थित होते हैं ?
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