कश्मीर में हिंदू कब से रह रहे हैं? जानें 5000 साल पुराना सच

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Kashmir: ऋग्वेद, महाभारत, शंकराचार्य और कश्मीर शैववाद, कश्मीर में हिंदुओं की उपस्थिति का 5000 वर्षों पुरानी है. पौराणिक ग्रंथ इस बात की पुष्टि करते हैं. कश्मीर केवल एक भूगोल नहीं, बल्कि भारत की वैदिक आत्मा का जीवंत प्रतीक है. यहां हिंदू संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि वे समय की हर आंधी से टकराकर भी जीवित रहीं. कश्मीर में हिंदू कब से हैं? आइए जानते हैं.

1. ऋग्वेद में कश्मीर: वैदिक काल (1500 BCE से पहले)
कश्मीर का सबसे प्राचीन उल्लेख वेदों में मिलता है. ऋग्वेद में वर्णित ‘सप्त-सिंधु’ प्रदेश का हिस्सा कश्मीर भी था. यह वह काल था जब आर्य सभ्यता अपने चरम पर थी, और ब्राह्मण, ऋषि-मुनि इस हिमालयी क्षेत्र में तपस्या किया करते थे. ‘कश्मीर’ नाम की उत्पत्ति कश्यप ऋषि से हुई है. माना जाता है कि उन्होंने ही इस क्षेत्र को जल से मुक्त कर बसाया था.

2. महाभारत काल में कश्मीर (3100 BCE के आस-पास)
महाभारत में कश्मीर का उल्लेख एक महत्वपूर्ण जनपद के रूप में हुआ है. यहां भी क्षत्रिय, ब्राह्मण और अन्य हिंदू जातियों की उपस्थिति रही है. यह काल बताता है कि कश्मीर कोई अलग-थलग इलाका नहीं था, बल्कि भारतीय भू-राजनीति और धर्मनीति का हिस्सा था.

3. सम्राट अशोक और मौर्य काल
अशोक ने बौद्ध धर्म को फैलाया, पर उसके पहले कश्मीर वैदिक सनातन संस्कृति का गढ़ था. बौद्ध धर्म भी यहां के ब्राह्मणों की विद्वता से ही मजबूत हुआ.

4. शंकराचार्य और शारदा पीठ (8वीं सदी CE)
आदि शंकराचार्य कश्मीर आए और शारदा पीठ की स्थापना की. यह पीठ भारत की चार प्रमुख विद्यापीठों में से एक बन गई और कश्मीर को ज्ञान की राजधानी का दर्जा मिला.

5. कश्मीर शैव दर्शन (8वीं–12वीं सदी)
यह काल कश्मीर में हिंदू दार्शनिक उत्कर्ष का स्वर्णकाल था. अभिनवगुप्त, वसुगुप्त, कल्लट जैसे आचार्यों ने यहां से ‘कश्मीर शैववाद’ को जन्म दिया, जो अद्वैत से भी आगे की चेतना को छूता था.

6. मुस्लिम आक्रमण और प्रतिरोध (14वीं सदी के बाद)
जब मुस्लिम आक्रमणों ने कश्मीर को प्रभावित किया, तब भी कश्मीरी पंडितों ने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए महान बलिदान दिए. मार्तंड सूर्य मंदिर, अवंतिपोरा और अन्य मंदिर आज भी उस वैभव के साक्ष्य हैं.

कश्मीर में हिंदुओं की उपस्थिति कोई 100-200 साल पुरानी नहीं, बल्कि यह 5000 वर्षों से भी अधिक पुरानी है. यह क्षेत्र आरंभ से ही भारत की सनातन चेतना का अंग रहा है, ऋषियों की तपोभूमि, ज्ञान का केंद्र और आध्यात्मिक प्रयोगशाला.

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