Jainism: जैन धर्म में जीवित रहते हुए कीड़े-मकोड़े से भी क्षमा क्यों मांगी जाती है?

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Jainism: जैने धर्म के पांच सिद्धांत हैं जोकि इस प्रकार है- अहिंसा, सत्य, अचौर्य या अस्तेय (चोरी न करना). ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह. इन सभी सिद्धांतों में अहिंसा (Ahimsa) प्रमुख सिद्धांत है, जिसका सख्ती से पालन किया जाता है. जैन धर्म के पांच व्रतों में अंहिंसा मुख्य सिद्धांत है, जिसे इस धर्म की आधारशिला माना जाता  है.

जैन धर्म में हर तरह के जीवित प्राणी फिर चाहे उनका आकार कैसे भी हो, आध्यात्मिक विकास जैसा भी हो सभी एक समान माने जाते हैं. ये लोग किसी भी जीवित प्राणी जानवर, पक्षी यहां तक कि छोटे कीड़े-मकोड़े को भी किसी प्रकार से मारने, घायल करने या नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकते हैं. क्योंकि प्रत्येक जीवित प्राणी को जीवित रहने का अधिकार है.

कीड़े-मकोड़े से भी माफी मांगते है जैन धर्म के लोग

जैन साहित्य में कहा गया है- “किसी भी प्राणी या जीवित प्राणी को चोट न पहुंचाएं, गाली न दें, दमन न करें, गुलाम न बनाएं, अपमान न करें, पीड़ा न दें, यातना न दें या मारें.” जैन धर्म के लोग कीड़े समेत किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान पहुंचाने से बचते हैं, क्योंकि किसी भी प्राणी को मन, वचन या कर्म से दुख नहीं देना चाहिए, चाहे वह कितना ही सूक्ष्म जीव क्यों न हो. जैने धर्म के सिद्धांत के आधार पर-

  • हर जीव में आत्मा होती है और वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है
  • अनजाने मे हुई हिंसा भी पाप होती है. अनजाने में भी अगर कीड़े-मकोड़े या सूक्ष्म जीव की हत्या हो जाए तो इसके लिए प्रायश्चित करना जरूरी होता है.
  • पर्युषण पर्व और क्षमावाणी के दिन जैन अनुयायी जाने-अनजाने में हुई हर तरह के हिंसा (कीड़े-मकोड़े की हत्या) के लिए क्षमा मांगते हैं.
  • “मिच्छामी दुक्कड़म” यह जैन धर्म में क्षमा और पश्चाताप का प्रतीक है. इसका अर्थ है कि, “यदि मैने जान-बूझकर भी आपको दुख पहुंचाया हो तो कृपया मुझे क्षमा करें.” इसमें जैन धर्म के लोग सभी जीवों से, यहां तक कि कीड़े-मकोड़ों से भी क्षमा मांफी मांगते हैं.

 

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