‘केसरी वीर’…शिव के भक्त सिर्फ शीश चढ़ाते हैं, झुकाते नहीं

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भारत के सिनेमा घरों में आज शुक्रवार को ‘Kesari Veer’ को रिलीज हो गई. फिल्म समीक्षक इस फिल्म की तारीफ कर रहे हैं, सोशल मीडिया पर इस फिल्म की चर्चा तेज हो गई है. फिल्म में सूरज पंचोली, सुनील शेट्टी, विवेक ओबरॉय जैसे बड़े एक्टर हैं. लेकिन यहां हम फिल्म नहीं बल्कि उस किरदार पर बात करेंगे जिसे भलेही कम लोग जानते हैं लेकिन उसका शौर्य अद्भूत था.

16 साल की उम्र में ऐसा कारनामा कर दिया जिसकी चर्चा 400 साल बाद भी हो रही है. ये कौन थे और इनका भारत के लिए क्या योगदान रहा, क्यों कहलाए जाते हैं शिव भक्त आइए जानते हैं.

भारत के सिनेमा घरों में जिस केसरी वीर (Kesari Veer Release) को आज रिलीज किया गया है दरअसर ये कहानी है एक वीर योद्धा हमीरजी गोहिल की है जो गुजरात में पैदा हुए. अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने जब सोमनाथ मंदिर को लूटने के लिए हमला किया तो 16 साल की उम्र में हमीरजी गोहिल ने पूरी बहादुरी से इसका मुकाबला किया.

इस शौर्य के लिए हमीरजी गोहिल को सौराष्ट्र के राजपूतों और गोहिल समाज एक महान योद्धा के रूप में पूजता है. आइए जानते हैं इस महान योद्धा और उसके भक्ति प्रेम के बारे में-

हमीरजी गोहिल, एक शिवभक्त राजपूत योद्धा थे जिन्होंने मुगलों के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी. राजपूत वीरता और शिवभक्ति का प्रतीक, हमीरजी गोहिल की कहानी हर भारतीय के लिए एक प्रेरणा है.

हमीरजी गोहिल शिवभक्त थे जिनकी वीरता से दुश्मन घबराते थे
भारत के गौरवशाली इतिहास में ऐसे कई योद्धा हैं जिनके बलिदान की गूंज आज भी इतिहास के पन्नों में दबी है. हमीरजी गोहिल भी उन्हीं में से एक हैं. हमीरजी गोहिल एक ऐसा नाम जो आज ‘केसरी वीर’ बनकर लाखों शिवभक्तों और राष्ट्रप्रेमियों को प्रभावित कर रहा है.

कौन थे हमीरजी गोहिल?
हमीरजी गोहिल, जिन्हें ‘वीर हमीरजी’ के नाम से भी जाना जाता है. ये सौराष्ट्र के अर्थेला (लाठी) के राजा भीमजी गोहिल के पुत्र थे. इन्होंने सोमनाथ मंदिर की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया, सोमनाथ मंदिर जो गुजरात में एक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है. जिसकी ख्याति दूर देशों तक फैली हुई थी.

16वीं शताब्दी में हमीरजी गोहिल का जन्म ढोला, सौराष्ट्र (भावनगर, गुजरात) में गोहिल वंश में एक राजपूत योद्धा के रुप में हुआ था. हमीरजी गोहिल बचपन से ही अद्वितीय पराक्रमी और सनातन धर्म को मनाने वाले थे. केवल 16 वर्ष की आयु में उन्होंने एक मुगल सेनापति को परास्त कर इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया.

जब 16 साल के हमीर ने मुगलों को चुनौती दी
इतिहास बताता है कि जब मुगल सेनाएं गुजरात की ओर बढ़ रही थीं, तब हमीरजी ने अकेले ही उनका रास्ता रोका. जब आत्मसमर्पण का प्रस्ताव आया, उन्होंने दो टूक कहा:-

‘शिव के भक्त सिर्फ शीश चढ़ाते हैं, झुकाते नहीं.’

अकेले ढोला की लड़ाई में उन्होंने सैकड़ों मुगलों को रणभूमि में ढेर कर दिया था. लड़ते-लड़ते अंत में वह वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन उनकी शहादत ने सौराष्ट्र की मिट्टी में आजादी के बीज बो दिए थे.

हमीरजी और उनकी शिवभक्ति 
हमीरजी गोहिल हर युद्ध से पहले भगवान शिव का रुद्राभिषेक करते थे. कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन का प्रत्येक युद्ध ‘धर्मयुद्ध’ के रूप में देखा, जिसमें विजय का उद्देश्य सत्ता नहीं, ‘धर्म रक्षा’ था.

आज उनकी कहानी ‘केसरी वीर’ फिल्म के माध्यम से पर्दे पर आई है. भगवा वस्त्र, शिव की भस्म, और आंखों में प्रतिशोध यह फिल्म न सिर्फ मनोरंजन है, बल्कि एक जागरण है, यही कारण है कि युवाओं के बीच इसका चर्चा अधिक हो रही है.

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