गीता ही नहीं इस किताब में भी छिपा है जीवन की समस्याओं के समाधान

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Gyan Ki Baat: आजकल शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो दवाई नहीं खाता है. मनुष्य की औसत आयु कम हो रही है. उच्च शिक्षा लिए लोग आत्महत्या करने लगे हैं. बहुत से तो पढाई बीच में छोड़ देते हैं और उलटे सीधे काम करते हैं. सेलिब्रिटी और पैसा पाने के लिए तो कुछ भी करने को तैयार हैं. यहाँ तक कि कपड़े उतारने से भी नहीं झिझक रहे हैं. नैतिक पतन इतने जोरों पर है कि क्या कहने !

ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या इस तरह की समस्या का समाधान हिन्दू शास्त्रों में है? आइए जानते हैं स्तंभकार और एस्ट्रोलॉजर डॉ. महेंद्र ठाकुर से क्या है इन समस्याओं का हल.

यदि इस प्रश्न का उत्तर एक शब्द में दिया जाए तो ‘हाँ’ इस समस्या का समाधान शास्त्रों में है. वैसे इस प्रश्न का उत्तर यदि पूछना है तो अपने घर में अपने माता पिता या दादा दादी से पूछना चाहिए. क्योंकि ये उत्तर माता पिता या दादा दादी बहुत अच्छे से जानते हैं. जहाँ तक हिन्दू परम्परा या शास्त्रों की बात है तो उनमें इसका उत्तर बहुत विस्तार से दिया हुआ है. लेकिन यह एक विडंबना ही है कि आजकल की मॉडर्न जेनेरेशन को सब कुछ शोर्ट में चाहिए, विस्तार में कोई जाना ही नहीं चाहता.

इसलिए उक्त समस्या का शास्त्रोक्त समाधान केवल एक लाइन में देने का प्रयास किया गया है. अगर एक लाइन में उत्तर चाहिये तो फिर आपको मनुस्मृति उठानी पड़ेगी. ये वही मनुस्मृति है जिसे बिना पढ़े ही आजकल लोग फोटोकॉपी करके चार पांच पन्ने लेकर जलाने या फाड़ने का नाटक करते रहते हैं.

मैंने छठी सातवीं क्लास में एक श्लोक पढ़ा था. तब अच्छे अंक लेने के लिए रट्टा मारते थे. अध्यापक भी उसी के लिए पढाते थे. बाद में पता चला कि ये श्लोक मनुस्मृति का है. जब उस श्लोक पर थोडा विचार किया तो पाया कि वो श्लोक तो एक ‘सूत्र’ है और उसका प्रयोग अपने जीवन में करना चाहिए. हो सकता है वो श्लोक आज भी स्कूलों में पढाया जाता है.

मनुस्मृति का वह जीवनोपयोगी ‘सूत्र’ रूपी श्लोक है

अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।

चत्वारि तस्य वर्धन्तॆ आयुर्विद्या यशॊ बलम् । ।2. 121 । ।

इस श्लोक का अर्थ क्या है- “जो प्रतिदिन अपने बड़े बुजुर्गों का अभिवादन करता है या उनके चरण छूता है, या उन्हें प्रणाम करता है तो उसके चार गुण बढ़ते हैं और वे चार गुण है आयु, विद्या, यश और बल.”

आलेख में जिन समस्याओं का जिक्र हुआ है (आयु का कम होना (बीमारियों के कारण), संस्कारहीन शिक्षा के बिना लोगों द्वारा आत्महत्या जैसे कदम उठाना, सेलिब्रिटी बनने और पैसा या बल अर्जित करने के लिए कुछ भी करना आदि) उन्हें शास्त्र में गुण कहा गया है. अब आजकल लोगों ने शास्त्र पढ़ना छोड़ दिया है या फिर दादा दादी और घर के बड़े बुजुर्गों के साथ समय बिताना कम कर दिया है, जिसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि जो गुण थे वो अवगुण बन गए या फिर समस्याएं बन गए.

एक बहुत बड़े वैज्ञानिक हुए जिनका नाम है I. M. Kolthoff, उन्हें father of modern analytical chemistry भी कहा जाता है. उनकी एक बहुत प्रसिद्ध स्टेटमेंट है  ‘theory guidesexperiment decides

अर्थात् थ्योरी आपका मार्गदर्शन करनी है और प्रयोग निर्धारण करता है.

यहाँ शास्त्र की थ्योरी है कि बड़े बुजुर्गों के पैर छूने से या उन्हें प्रणाम या नमस्ते करने से, उनका अभिवादन करने से, या उनकी सेवा करने से व्यक्ति कि आयु लम्बी होती है, उसे विद्या मिलती है, उसका यश बढ़ता है और बल भी बढ़ता है.

 तो अब थ्योरी को एक्सपेरिमेंट करिये. जब आप सूत्र को क्रियान्वित करेंगे तभी परिणाम समझ में आएगा. इसलिए जिस भी व्यक्ति को लंबी आयु चाहिए, अच्छे स्किल चाहिए या नॉलेज चाहिए, जो सेलेब्रिटी बनना चाहता है, जो चाहता है कि दुनिया में उसका नाम हो और जिसको ताकत चाहिए (ये ताकत पैसे की हो या शरीरिक या फिर किसी भी तरह की ताकत हो) तो उसे अपने बड़े बुजुर्गों यानि अपने दादा- दादी, माता-पिता और घर में जितने भी बड़े लोग हैं उनके चरण रोज छूने चाहिए या उन्हें नमस्ते करना चाहिए.

उनका अभिवादन करना चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए. उनके आदेश का पालन ही उनकी सेवा है.  ये जीवन में सफलता प्राप्त करने का और उक्त समस्याओं से निजात पाने का प्रथम सूत्र हो सकता है. इतना करिये और फिर जीवनभर लाभ लीजिये. 

नारायणायेती समर्पयामि….

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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