राक्षसों के गुरु आपके स्वामी भी हो सकते हैं, अगर आपकी राशि ये है

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Guru Shukracharya: देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं तो दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य. दोनों ही भगवान ब्रह्मा के वंशज हैं. शुक्राचार्य महान ज्ञानी होने के साथ-साथ एक अच्छे नीतिकार भी थे. ज्योतिष शास्त्र में दैत्यों के गुरु शुक्र देव को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.

कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत होने से जातक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है. आखिर शुक्राचार्य को कैसे मिला नवग्रहों में स्थान, ये किन राशियों के स्वामी हैं, इनके पास कौन सी दुर्लभ शक्ति है.

शुक्र देव के पास थी मुर्दे को जिंदा करने की शक्ति

शास्त्रों के अनुसार शुक्र देव ने देवों के देव महादेव की कठिन भक्ति कर वरदान में संजीवनी मंत्र प्राप्त की. इस मंत्र के बल से किसी भी मृत व्यक्ति को पुनर्जीवित किया जा सकता है. इस विद्या के बल से शुक्र देव ने बड़ी संख्या में मृत दानवों को पुनर्जीवित किया था.

कैसे दैत्य गुरु शुक्राचार्य को मिला ग्रहों में स्थान

अपनी तपस्या और विद्या के कारण ही शुक्राचार्य ने दैत्य गुरु का स्थान पाया. शुक्राचार्य ने अपनी विद्या दुरुपयोग भी किया, इसके चलते एक बार महादेव ने उन्हें निगल लिया. कई प्रयासों के बाद भी जब शुक्र उनके पेट से बाहर नहीं निकल पाते तो उन्होंने शिव जी की स्तुति करना शुरु कर दिया. भोलेनाथ तो भोले हैं जल्दी प्रसन्न भी हो गए महादेव ने शुक्राचार्य को शुभ ग्रह का आशीर्वाद देते हुए नव ग्रहों में शामिल कर दिया.

किन राशियों के स्वामी हैं शुक्र

ज्योतिषियों की मानें तो शुक्र देव वृषभ और तुला राशि के स्वामी हैं. मीन राशि में उच्च के होते हैं. कुंडली में शुक्र की महादशा 20 वर्षों तक चलती है. शुक्र देव श्वेत वर्ण के हैं. इनमें स्त्रीत्व का गुण अधिक है. इसके लिए ज्योतिष शुक्र देव को स्त्री ग्रह मानते हैं.

कुंडली में शुक्र की शुभ-अशुभ स्थिति

कुंडली में शुक्र के मजबूत होने पर व्यक्ति का जीवन सुख-सुविधाओं में व्यतीत होता है और लाइफ में कभी भी किसी चीज की कमी नहीं रहती है. वहीं, शुक्र के कमजोर होने पर व्यक्ति राजा से रंक बन सकता है.

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