गुलियन बैरी सिंड्रोम कैसे दिमाग पर डालता है बुरा असर? जानें इसके लक्षण

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महाराष्ट्र में गुलियन-बैरी सिंड्रोम (GBS) के मामले सामने आ रहे हैं. पुणे में कई मामले सामने आने के बाद सोलापुर में एक व्यक्ति की गिलियन.बैरे सिंड्रोम से मौत हो गई. महाराष्ट्र स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, 26 जनवरी तक गिलियन-बैरे सिंड्रोम के 101 सक्रिय मरीज थे। इसमें पुणे, पिंपरी-चिंचवाड़ और कई अन्य जिले शामिल हैं। अगर मरीज को GBS का समय पर इलाज नहीं मिलता है, तो स्थिति गंभीर हो सकती है। आइए डॉक्टर से जानते हैं कि गिलियन-बैरे सिंड्रोम क्या है। इसके लक्षण और इलाज क्या हैं?

गुलियन-बैरी सिंड्रोम (GBS) एक गंभीर बीमारी है और यह अचानक होती है जिसमें नसें सूजने लगती हैं. हमारे शरीर में माइलिन शीट नामक एक परत होती है जो नसों के सही तरीके से काम करने के लिए जरूरी होती है. इस सिंड्रोम के कारण डिमाइलिनेशन होने लगता है क्योंकि हमारा इम्यून सिस्टम नसों की उस सुरक्षात्मक परत पर हमला करना शुरू कर देता है. हमें बीमारियों से बचाने का काम करने वाला इम्यून सिस्टम हमारी माइलिन शीट पर हमला करता है। इससे कई नसें प्रभावित होती हैं, इसीलिए इसे AIDP भी कहते हैं.

गुलियन-बैरी सिंड्रोम (GBS) के लक्षण

गुलियन-बैरी सिंड्रोम के लक्षणों की बात करें तो सबसे पहले पैरों में कमजोरी शुरू होती है. यह कमजोरी शरीर में ऊपर की ओर बढ़ती है. सर्दी, खांसी या डायरिया जैसे किसी भी वायरल संक्रमण से यह शुरू हो सकता है. किसी भी सर्जरी और वैक्सीन से यह सिंड्रोम हो सकता है.

जिसके बाद हमारा इम्यून सिस्टम हमारे ही शरीर पर हमला करता है. इसके लक्षण तेजी से फैलते हैं. हालांकि, अच्छी बात यह है कि ज्यादातर मामलों में. हफ्ते के अंदर चीजें स्थिर हो जाती हैं। लेकिन 20 फीसदी मामलों में मरीज को वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत पड़ती है. 

चलने में दिक्कत

हाथ-पैर हिलाने में दिक्कत

रीढ़ की हड्डी में कमजोरी

चेहरे के पक्षाघात के लक्षण

छाती की मांसपेशियों में कमजोरी

बोलने और खाने में दिक्कत

सांस लेने में दिक्कत

कमज़ोर नज़र

शरीर का संतुलन खोना

गुलियन-बैरी सिंड्रोम (GBS) का इलाज

चूंकि यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ी बीमारी है, इसलिए इसमें दो तरह की थेरेपी कारगर साबित होती हैं. एक है प्लास्मफेरेसिस, जिसमें उन एंटीबॉडी को शरीर से निकाल दिया जाता है जो हम पर हमला कर रहे होते हैं. दूसरा है IVIG। इस सिंड्रोम की वजह से 5% लोगों की मौत का खतरा रहता है.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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