आदिवासी जनजाति में अनोखे अंदाज में होता है गणगौर मेला, ये है विशेषता

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Gangaur 2025: राजस्थान के सिरोही जिले में सियावा गाँव में आदिवासियों का सबसे बड़ा व प्रसिद्ध मेला गणगौर का आयोजन हों रहा है. जिसमें सिरोही जिले सहित गुजरात राज्य के विभिन्न गाँवो से आदिवासी समुदाय से लोग शिरकत कर रहें है.

राजस्थान में आदिवासी गरासिया जनजाति में गणगौर पूजा अनोखे तरीके से होती है. वैशाख कृष्णा पंचमी को सिरोही जिले के सियावा गांव में गरासिया जनजाति का विशाल गणगौर मेला लगता है इसमें जिले के अलावा उदयपुर, पाली, बांसवाड़ा समेत गुजरात के बनासकांठा, साबरकांठा व अन्य जिलों से जनजाति के लोग पहुंचते हैं.

यह रहीं है परम्परा

समाज के वरिष्ठजन बताते हैं कि ये मेला करीब 250 वर्ष से यहां लग रहा है. सियावा गांव में माताफली, जलोइयाफली गांव फली में रहने वाले आदिवासी हर वर्ष एक-एक गौत्र गणगौर लेते हैं. चैत्र शुक्ल एकम को समाज के युवक-युवतियां गणगौर का व्रत रखते हैं. करीब बीस दिन तक गौर (पार्वती) का अखंड दीप प्रज्वलित किया जाता है. नीम-फल समेत डालियां आदि लगाकर गौर-ईश्वर का स्वरूप तैयार किया जाता है.

अंतिम दिन पंचमी बांस के सहारे आदम रूप में तैयार किया जाता है. फूल-पत्ती, आम के पत्ते, महुआ फल, कच्चे खजूर, आदि की मालाएं लगाकर गौर-ईसर को सजाया जाता है. संध्या को गणगौर मेले में विशेष जुलूस-उत्सव के साथ नाचते-गाते मेला स्थल लाया जाता है. जहां गौर-ईसर का विवाह होता है. विवाह के दौरान जनजाति के युवक-युवतियां पारम्परिक परिधानों में नृत्य करते हैं.

युवतियां एक साथ करती हैं नृत्य

मेला स्थल पर जगह-जगह पारंपरिक वेशभूषा में युवतियां आपस में एक दूसरे के गले में हाथ डालकर लोकगीत गाते हुए घेरा बनाकर नृत्य करती हैं. मेले में वालर नृत्य, ज्वारा नृत्य, मोर नृत्य आदि आकर्षण का केंद्र रहते हैं. गैर नृत्य एक पारंपरिक आदिवासी नृत्य है, जो उनकी संस्कृति और जीवनशैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

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