जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण में हो रहे बदलाव से मौसम का पैटर्न भी पूरी तरह बदल गया है. भारत जैसे देश में मौसम की विविधता पहले से ही चुनौती रही है, लेकिन अब एक नई समस्या परेशान करने लगी है. यह समस्या कम तापमान में भी ज्यादा गर्मी का अहसास होना है. यह स्थिति सेहत के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर सकती है, जिसकी पुष्टि नई रिसर्च में भी हुई है.
कम तापमान में क्यों लगती है ज्यादा गर्मी?
आमतौर पर हम तापमान को ड्राई बल्ब तापमान के आधार पर मापते हैं, जो थर्मामीटर द्वारा दिखाया जाता है. हालांकि, इंसानों का शरीर तापमान को केवल ड्राई बल्ब के आधार पर महसूस नहीं करता है. इसके बजाय ‘वेट बल्ब तापमान’ (WBT) और ‘हीट इंडेक्स’ जैसी वजह यह तय करती हैं कि हमें कितनी गर्मी महसूस हो रही है. वेट बल्ब तापमान में हवा की आर्द्रता को भी ध्यान में रखा जाता है, जो पसीने के वाष्पीकरण को प्रभावित करता है. जब आर्द्रता अधिक होती है तो पसीना आसानी से नहीं सूखता, जिसके कारण शरीर को ठंडक नहीं मिल पाती और हमें ज्यादा गर्मी महसूस होती है, भले ही तापमान कम हो.
यह स्थिति सेहत के लिए कितनी खतरनाक?
द लैंसेट न्यूरोलॉजी जर्नल में पब्लिश स्टडी के मुताबिक, कम तापमान में ज्यादा गर्मी का अहसास न केवल फिजिकल हेल्थ, बल्कि मेंटल हेल्थ पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है. यूनिवर्सिटी ऑफ कॉलेज लंदन के रिसर्चर प्रोफेसर संजय सिसोदिया के अनुसार, तापमान में उतार-चढ़ाव मेंटल सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है. यह स्थिति माइग्रेन, अल्जाइमर और अन्य न्यूरोलॉजिकल समस्याओं को बढ़ा सकती है.
शरीर पर क्या पड़ता है असर?
जब शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है तो हीट स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. इसके लक्षणों में चक्कर आना, चिड़चिड़ापन, दिल की तेज धड़कन और सांस लेने में तकलीफ शामिल हैं. ज्यादा ह्यूमिडिटी ज्यादा होने के कारण पसीना नहीं सूखता है तो शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी हो सकती है. यह थकान, कमजोरी और बेहोशी का कारण बन सकता है. गर्मी के कारण हार्ट को ब्लड को ठंडा करने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जिससे हार्ट पेशेंट के लिए खतरा बढ़ जाता है.
इन लोगों को ज्यादा होती है दिक्कत
कई रिसर्च में यह बात साबित हुई है कि बढ़ती गर्मी मेंटल हेल्थ पर भी गंभीर असर डाल रही है. यह चिंता, अवसाद और सिजोफ्रेनिया आदि विकारों को बढ़ा सकती है. यह खासतौर पर युवाओं और बच्चों पर ज्यादा प्रभाव डालती है. अनुमान है कि यदि गर्मी इसी तरह बढ़ती रही तो 2030 तक मेंटल डिजीज का खतरा 11 फीसदी और 2050 तक 27.5 पर्सेंट तक बढ़ सकता है. ज्यादा गर्मी से बुजुर्गों, बच्चों और पहले से मौजूद बीमारियों जैसे डायबिटीज और हार्ट डिजीज से पीड़ित लोगों को ज्यादा दिक्कत हो सकती है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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