Diwali 2024 Puja Muhurt Live: दिवाली दीप और प्रकाश का पर्व है. इस दिन देश का कोना-कोना दीपों की रोशनी से जगमगाता हुआ नजर आता है. कार्तिक अमावस्या के दिन दिवाली का त्योहार मनाने की परंपरा है. लेकिन मुख्य काल प्रदोष में अमावस्या तिथि होना जरूरी है. यही कारण है कि दिवाली की डेट को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई.
हालांकि काशी में विद्वानों की बैठक और सर्वसम्मति के बाद यह निर्णय लिया गया कि इस साल दीपावली का पर्व 31 अक्टूबर 2024 को ही मनाया जाना शास्त्रोचित होगा. वहीं अमावस्या तिथि से संबंधित पूजा-पाठ, दान, स्नान और तर्पण आदि शुक्रवार 1 नवंबर 2024 को किए जाएंगे.
दिवाली के दिन घर, ऑफिस, कारखाने और दुकान आदि में लोग लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना करते हैं. इस दिन संध्याकाल में लक्ष्मी पूजन करने का खास महत्व होता है. 31 अक्टूबर को दीपावली के दिन शाम 05:36 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट तक मां लक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं.
क्यों मनाई जाती है दिवाली क्या है इसकी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण जब स्वर्ग श्रीविहीन (लक्ष्मी विहीन) हो गया था और दानवों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया. इसके बाद देवताओं को स्वर्ग छोड़ना पड़ा और उस पर दानवों का अधिपत्य हो गया.
तब सभी देवतागण ब्रह्मा और विष्णु जी के पास पहुंचे और सारी बात बताई. विष्णु जी ने देवताओं को समुद्र मंथन करने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन से जो अमृत कलश निकलेगा उसका पान करने के बाद सभी देवता अमर हो जाएंगे और युद्ध में कोई परास्त नहीं होगा. लेकिन समुद्र मंथन के लिए दानवों की सहायता लेनी होगी.
इसके बाद देवताओं ने दानवों की मदद से समुद्र मंथन किया. वासुकि नाग और मंदार पर्वत से समुद्र को मथा गया. समुद्र मंथन से न सिर्फ अमृत कलश, बल्कि देवी मां लक्ष्मी भी पुनः अवतरित हुईं. समुद्र मंथन से निकले अमृत का पान कर देवता अमर हो गए और लक्ष्मी के अवतरित होने पर स्वर्ग में पुनः सुख, सौभाग्य और ऐश्वर्य लौट आया. इसलिए हर वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन दीवाली मनाई जाती है.
एक परंपरा यह भी है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम 14 साल का वनवास पूरा कर कार्तिक अमावस्या के दिन ही अयोध्या लौट थे. भगवान के अयोध्या लौटने की खुशी में अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर फूलों से अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया था. मान्यता है कि इसलिए दिवाली के दिन दीप जलाए जाते हैं और घर से लेकर गली-मौहल्ले को फूल-मालाओं से सजाया जाता है.
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