Eid-Ul-Adha 2025: बकरीद केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है जो त्याग, विश्वास और सेवा के महत्व को बताता है. बकरीद को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं. लोगों में अभी से उत्सुकता दिखाई देने लगी है. इस्लाम धर्म का ये बेहद खास पर्व है जो कुर्बानी से जोड़ा हुआ है. कब है ईद-उल-अजहा 2025? भारत और सऊदी अरब में तारीखों में क्यों होता है फर्क? इन प्रश्नों का उत्तर आइए जानते हैं.
ईद-उल-अजहा, जिसे बकरीद भी कहा जाता है, इसकी तारीख इस्लामी पंचांग के 12वें महीने ‘धू अल-हिज्जा’ के चांद पर निर्भर करती है. सऊदी अरब में 27 मई 2025 की शाम को धुल-हिज्जा का चांद देखा गया है. जिस कारण से वहां पर 28 मई 2025 को धुल-हिज्जा की शुरुआत हुई और ईद-उल-अजहा की तारीख 6 जून 2025 तय हुई है. वहीं भारत में 7 जून को बकरीद है.
भारत और सऊदी अरब में तारीखों में अंतर क्यों होता है?
अक्सर ये प्रश्न लोगों के जेहन में आता है. इसके पीछे कुछ विशेष कारण हैं. अव्वल सऊदी अरब में चांद देखने की प्रक्रिया अलग है और वहां पर इस्लामी महीनों की शुरुआत अक्सर पहले होती है.
भारत में चांद स्थानीय स्तर पर देखा जाता है, इसलिए यहां एक दिन की देरी होती है. भारत में चांद 28 मई 2025 को देखा गया, जिसके बाद यहां ईद-उल-अजहा यानि बकरीद 7 जून 2025 को मनाई जाएगी.
चांद देखना, क्यों महत्वपूर्ण है?
ईद-उल-अजहा का आयोजन हज यात्रा और हजरत इब्राहीम (अलैहि सलाम) की कुर्बानी की याद में होता है. इस्लामी परंपरा में चांद देखने से ही महीनों की शुरुआत होती है, इसलिए हर देश अपने स्थानीय चंद्र दर्शन पर आधारित तारीखों को मान्यता देता है.
बकरीद का महत्व
इस्लामिक मान्यता के अनुसार बकरीद पर कुर्बानी पैगंबर इब्राहिम और इस्माइल के अल्लाह के प्रति प्रेम की याद दिलाती है. एक मान्यता के मुताबिक हजरत इब्राहिम अपने पुत्र हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा कि राह में कुर्बान करने जा रहे थे.
अल्लाह उनकी इस भक्ति और समर्पण भाव से बेहद खुश हुए और उन्होंने उनके पुत्र को जीवनदान दे दिया. तभी से उनकी याद में पवित्र पर्व मनाया जाने लगा. इस दिन लोग जानवरों की कुर्बानी देते हैं और उसका मांस तीन भागों में बांटते हैं, गरीब, रिश्तेदारों और अपने लिए.
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