Salar Masood Ghazi: उत्तर प्रदेश में सैयद सालार मसूद गाजी की मजार पर लगने वाले मेले को लेकर बवाल मचा हुआ है. सालार मसूद की मजार बहराइच में है, जहां उसे गाजी मियां के रूप में पूजा जाता है. हर साल गाजी मियां की दरगाह पर मेले का आयोजन होता है और मेला सिर्फ बहराइच में ही नहीं, बल्कि संभल से लेकर मुरादाबाद तक लगता है. हर साल उर्स के इस मेले में सिर्फ मुसलमान नहीं बल्कि बड़ी संख्या में हिंदू भी इबादत के लिए आते हैं, लेकिन हिंदू संगठनों ने प्रशासन से मांग की है कि जिसने हिंदुओं पर आक्रमण किया उसकी महिमामंडन वाले मेले क्यों लगाए जा रहे हैं?
बहराइच में सालार गाजी की मजार पर दुआ मांगने का सिलसिला कई दशकों से चला आ रहा है, लेकिन अब इसको लेकर देश में बहस शुरू हो गई है. एक ओर जहां सपा मुखिया अखिलेश यादव का कहना है कि भाजपा हर मिली-जुली संस्कृति को खत्म कर रही है. मेले में हर धर्म जाति के लोग मिलते हैं. अगर वे कुंभ की तारीफ कर सकते हैं तो किसी और मेले की तारीफ क्यों नहीं कर सकते? वहीं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने साफ शब्दों में कह दिया है कि किसी भी आक्रांता का महिमामंडन स्वीकार नहीं किया जाएगा. अब सवाल ये है कि अचानक सालार मसूद गाजी के नाम पर विवाद शुरू क्यों हुआ.
संभल से शुरू हुआ सालार गाजी पर विवाद
दरअसल इस विवाद के पीछे है हर साल लगने वाला उर्स मेला, जिसका आयोजन हर साल बहराइच, संभल से लेकर मुरादाबाद तक होता है, लेकिन जब 18 मार्च को संभल से ये मेले के आयोजन के लिए बने गड्डे को बंद करने वाली तस्वीरें सामने आईं तो विवाद शुरू हो गया. संभल के एडिश्नल एसपी ने चेतावनी दे दी थी कहा कि लुटेरों की याद में हर साल लगने वाला नेजा मेला नहीं लगेगा. इसके बाद मुरादाबाद से लेकर बहराइच तक हिंदू संगठन मेला रोकने की मांग को लेकर पुलिस के दरवाजा खटखटाने लगे. विवाद बढ़ा तो यूपी सरकार और विपक्ष आमने-सामने खड़े दिखाई देने लगे.
यूपी सरकार की वेबसाइट पर सालार गाजी को लेकर क्या लिखा है?
सहारनपुर से कांग्रेस के सांसद इमरान मसूद सैयद सालार गाजी को सूफी संत बता रहे हैं तो वहीं यूपी में बीजेपी के नेता उन्हें आक्रमणकारी बता रहे हैं. यूपी सरकार के पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर बहराइच का पेज देखा तो उस पर दरगाह शरीफ के बारे में लिखा है- हजरत गाजी सालार मसूद, ग्यारहवीं शताब्दी के मशहूर इस्लामिक संत और सैनिक. इसमें आगे लिखा है कि हजरत गाजी सैयद सालार मसूद की दरगाह सिर्फ मुस्लिमों के लिए नहीं बल्कि हिंदुओं की आस्था से जुड़ी है. इस दरगाह को फिरोज शाह तुगलक ने बनवाया था. ऐसा माना जाता है कि जो दरगाह के पानी में नहा लेता है उसकी बीमारियां दूर हो जाती हैं, लेकिन अब सवाल ये है कि सैयद सालार मसूद संत थे या फिर आक्रमणकारी?
राजा सुहेलदेव के साथ गाजी का हुआ था युद्ध
कहा जाता है कि 1500 साल पहले 1034 में बहराइच में इसी चित्तौरा झील के किनारे राजा सुहेलदेव ने 21 राजाओं के साथ मिलकर सालार मसूद गाजी से युद्ध किया था और उसे मार दिया था. करीब 9 साल पहले 2016 में देश के गृह मंत्री अमित शाह ने बहराइच में राजा सुहेलदेव की प्रतिमा का अनावरण किया था. 13 अप्रैल 2016 को दिल्ली से गाजीपुर के बीच सुहेलदेव एक्सप्रेस की शुरुआत की गई थी. 2018 में पीएम मोदी ने राजा सुहेलदेव के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था. कुल मिलाकर देखा जाए तो बीजेपी ने यूपी में सुहेलदेव का सम्मान करके उन्हें एक नायक के तौर पर उभारा.
राजभर की पार्टी सुभासपा की मांग क्या है?
सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के राजा थे, जिस झील पर राजा सुहेलदेव और सालार मसूद गाजी का युद्ध हुआ था वहां महाराजा सुहेलदेव समिति के लोग विजयोत्सव मनाते हैं और यूपी में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी इस विवाद पर सबसे ज्यादा आक्रामक है और उसकी मांग है कि यहां राजा सुहेलदेव के नाम पर मेले का आयोजन होना चाहिए.
कौन था सालार मसूद गाजी?
सैयद सालार मसूद गाजी अफगान हमलावर महमूद गजनवी का भांजा था. गाजी ने बतौर सेनापति कई युद्ध लड़े थे. सालार मसूद गाजी पर गुजरात के सोमनाथ मंदिर को लूटने का आरोप है, लेकिन एक धड़ा सोमनाथ मंदिर में लूट के आरोप को गलत बताता है क्योंकि उस वक्त सालार मसूद की उम्र 11 साल थी और 18 साल की उम्र में यूपी के बहराइच में राजा सुहेलदेव ने उसे युद्ध में हरा दिया था. कहा जाता है कि सैयद सालार मसूद गाजी की मौत के बाद ही बहराइच में मजार बनी थी.
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