क्रांतिकारियों को ‘आतंकवादी’ बताने पर बवाल, विद्यासागर यूनिवर्सिटी ने मांगी माफी

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पश्चिम बंगाल में सरकारी विद्यासागर विश्वविद्यालय के इतिहास के एक प्रश्नपत्र में भारतीय क्रांतिकारियों को ‘आतंकवादी’ बताने को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है. इस घटना को लेकर तीखी राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई, जिसके बाद संस्थान को इसे ‘मुद्रण त्रुटि’ बताते हुए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी.
यह विवादास्पद घटना ग्रेजुएशन (प्रतिष्ठा-इतिहास) के छठे सेमेस्टर की परीक्षा (बंगाली में) के प्रश्नपत्र के 12वें प्रश्न में आया. विद्यार्थियों से ब्रिटिश शासन के दौरान ‘आतंकवादियों द्वारा मारे गए’ मिदनापुर के तीन जिला मजिस्ट्रेटों के नाम पूछे गए थे. बाद में विश्वविद्यालय ने इस त्रुटि को स्वीकार किया और इसे ‘प्रूफरीडिंग’ में हुई चूक बताया.
गलती जानने से पहले बट चुके थे प्रश्नपत्र 
कुलपति दीपक कर ने शुक्रवार (11 जुलाई, 2025) को कहा, ‘यह एक मुद्रण संबंधी त्रुटि थी, जो प्रूफरीडिंग के दौरान छूट गयी.’ उन्होंने कहा, ‘एक बार प्रश्नपत्र वितरित कर दिए जाने के बाद इसे ठीक करने का समय नहीं था. मैंने परीक्षा नियंत्रक को एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है.’
तीन मारे गए जिन मजिस्ट्रेट का जिक्र किया गया, वे जेम्स पेडी, रॉबर्ट डगलस और बर्नार्ड बर्ज थे. इन तीनों को मिदनापुर में उनके अत्याचार के लिए तीन साल के दौरान गोली मार दी गई थी. शिक्षाविद पबित्र सरकार ने इस गलती की निंदा करते हुए कहा, ‘स्वतंत्र भारत में ब्रिटिश दमन से लड़ने वाले युवाओं को ‘आतंकवादी’ कहना अकल्पनीय है. यह शब्द औपनिवेशिक शासकों की तरफ से इस्तेमाल किया जाता था.’
शुभेंदु अधिकारी ने पोस्ट कर जताई आपत्ति
पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में ‘आतंकवादी’ उल्लेख को ‘बेहद अपमानजनक’ बताया. उन्होंने कहा, ‘विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अधिकारियों ने 2025 के ग्रेजुएशन (प्रतिष्ठा-इतिहास) के छठे सेमेस्टर के प्रश्नपत्र में मिदनापुर के वीर क्रांतिकारियों को ‘उग्रवादी’ और ‘आतंकवादी’ बताकर एक बार फिर हमारे पूज्य स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान किया है.’
अधिकारी ने कहा, ‘यह कोई अकेली गलती नहीं है, बल्कि हमारे इतिहास को जानबूझकर विकृत किया जाता है. साल 2023 में जो शर्मनाक गलती की गयी थी, अब उसे ही दोहराया गया है. साल 2023 में इतिहास विभाग के प्रमुख और ‘पश्चिम बंगाल कॉलेज एवं विश्वविद्यालय प्राध्यापक संघ’ (डब्ल्यूबीसीयूपीए) में तृणमूल कांग्रेस से जुड़े एक जाने-माने नेता अध्यापक डॉ. निर्मल कुमार महतो की निगरानी में ऐसी शर्मनाक गलती की गयी थी.’
डॉ. महतो के खिलाफ अब तक नहीं हुई कार्रवाई
डब्ल्यूबीसीयूपीए तृणमूल कांग्रेस का राजनीतिक संगठन है, जिसमें प्राध्यापक शामिल हैं. भाजपा नेता ने पोस्ट करते हुए लिखा, ‘हैरानी की बात है कि बार-बार की गई चूक के बावजूद डॉ. महतो के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. इससे भी बुरी बात यह है कि उनका कद बढ़ गया है. 2023 की गलती के बाद उन्हें डब्ल्यूबीसीयूपीए के संयुक्त सचिव के पद पर पदोन्नत कर दिया गया.’
उन्होंने आगे लिखा कि जो लोग नहीं जानते, उनके लिए बता दूं कि अत्याचारी ब्रिटिश जिला मजिस्ट्रेट, बर्ज (1933), पेड्डी (1931) और डगलस (1932) को भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने निशाना बनाया था. पेड्डी की हत्या बिमल दासगुप्ता और ज्योतिजीवन घोष ने की थी.
तृणमूल कांग्रेस ने विवाद से खुद को किया अलग
महतो से उनकी प्रतिक्रिया के लिए संपर्क नहीं किया जा सका, जबकि विश्वविद्यालय सूत्रों ने अधिकारी की टिप्पणी को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया. तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश महासचिव कुणाल घोष ने इस विवाद से पार्टी को अलग करते हुए कहा, ‘प्रश्न कुछ लोगों ने तय किए थे, शिक्षा विभाग ने नहीं. इस बात की जांच होनी चाहिए कि प्रश्नपत्र को किसने मंज़ूरी दी.’
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सुजान चक्रवर्ती और कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने भी इस शब्दावली की निंदा की और इसे ‘स्वतंत्र भारत में अकल्पनीय’ बताया. उन्होंने इस तरह की चूक की अनुमति देने के लिए तृणमूल सरकार को जिम्मेदार ठहराया.
सिलेबस से बाहर आया प्रश्नपत्र
विश्वविद्यालय को और अधिक शर्मिंदगी का सामना तब करना पड़ा, जब शुक्रवार को स्नातक (प्रतिष्ठा-राजनीति विज्ञान) की परीक्षा रद्द कर दी गई, क्योंकि प्रश्नपत्र पाठ्यक्रम से बाहर का था. विश्वविद्यालय प्रशासन ने कहा कि अगले हफ्ते दोबारा परीक्षा कराई जाएगी.
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