वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ताओं और केंद्र से कई सवाल किए. इस दौरान उन्होंने बेहद अहम टिप्पणियां भी की हैं. ऐसी ही एक महत्वपूर्ण टिप्पणी है, जिसमें सेजीआई संजीव खन्ना ने कहा- जब बेंच सुनवाई के लिए बैठती है तो जज भूल जाते हैं कि वह किस धर्म से हैं और उनके लिए दोनों पक्ष एक समान होते हैं.
सीजेआई संजीव खन्ना के साथ बेंच में जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस संजय कुमार भी शामिल थे. सीजेआई ने सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी तब की जब एसजी तुषार मेहता ने कहा कि अगर कोर्ट हिंदू बोर्ड में गैर-हिंदुओं को शामिल करने का तर्क दे रहा है, तो उस लॉजिक के हिसाब से तो मौजूदा बेंच भी वक्फ को लेकर सुनवाई नहीं कर सकती है. इस पर सीजेआई ने कहा कि जब धार्मिक मामलों की देखभाल करने वाली परिषद को लेकर बात हो रहे है तो सवाल उठ सकते हैं. आप मंदिर के गवर्निंग बोर्ड के मुद्दे की जजों के साथ कैसे तुलना कर सकते हैं कि बेंच में अलग-अलग समुदाय के जज होने चाहिए.
आइए जानते हैं कि जस्टिस संजीव खन्ना ने और क्या-क्या कहा-
सीजेआई संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा, ‘हमें बताया गया कि दिल्ली हाईकोर्ट और ओबेरॉय होटल भी वक्फ की जमान पर हैं… हम ये नहीं कर रहे हैं कि सारी वक्फ बाय यूजर प्रॉपर्टी गलत तरीके से रजिस्टर्ड हैं, लेकिन कुछ चीजें हैं, जिन पर वाकई सोचने की जरूरत है.’
सीजेआई ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि नए कानून के अनुसार वो लोग कैसे वक्फ बाय यूजर रजिस्टर करवाएंगे, जो लंबे समय से वक्फ की जमीन पर रह रहे हैं क्योंकि उन्हें इसके लिए दस्तावेज देना होगा. उन्होंने कहा कि ये बात सही है कि कुछ जगहों पर दुरुपयोग हुआ है, लेकिन कुछ असली भी हैं. सीजेआई ने कहा कि उन्होंने प्रीवि काउंसिल के फैसले भी पढ़े हैं, जिसमें वक्फ बाय यूजर को मान्यता दी गई है. अगर आप वक्फ बाय यूजर को हटाते हैं तो बड़ा मसला हो सकता है.
सीजेआई ने एक और अहम टिप्पणी करते हुए सरकार से कहा कि आप इतिहास दोबारा नहीं लिख सकते हैं. उन्होंने एसजी मेहता से कहा, ‘अगर कोई पब्लिक ट्रस्ट 100-200 सालों पहले वक्फ घोषित किया गया… आज अचानक से आप कहें कि उस पर वक्फ ने कब्जा किया था.’ इस पर एसजी मेहता बोले कि इसका मतलब है कि अगर किसी के पास वक्फ है तो उसको ट्रस्ट बनाया जा सकता है, जिसके लिए कानून में प्रावधान है. सीजेआई ने उन्हें टोकते हुए कहा, ‘आप इतिहास दोबारा नहीं लिख सकते.’
सीजेआई खन्ना ने सुनवाई के दौरान एसजी मेहता से यह भी कहा कि सेंशोधित कानून के अनुसार वक्फ बोर्ड में आठ मुसलमान होंगे और दो गैर-मुस्लिम हो सकते हैं. सीजेआई ने पूछा कि क्या वह हिंदू ट्रस्ट में गैर-हिंदू या मुस्लिमों को शामिल होने की अनुमति देंगे. तुषार मेहता ने इस पर कहा कि इस लॉजिक के हिसाब से तो ये बेंच भी वक्फ की सुनवाई नहीं कर सकती. सीजेआई ने उन्हें टोकते हुए कहा कि वह कैसे इसकी जजों से तुलना कर सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘क्या आप कह रहे हैं कि अब हिंदू बंदोबस्ती में गैर-हिंदू को शामिल करने की इजाजत है, खुलकर बोलिए.’ वक्फ को लेकर सुनवाई कर रही बेंच में तीनों जज गैर-मुस्लिम हैं.
सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया कि इस कानून के हिसाब से इस्लाम का पांच साल से पालन करने वाला ही संपत्ति दान कर सकता है, उसको प्रमाण देना होगा, लेकिन राज्य सरकार को ये फैसला करने का अधिकार क्यों होना चाहिए कि कोई मुस्लिम है या नहीं. कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्य सरकार में कोई ये बताने वाला कौन होता है कि इस्लाम धर्म में विरासत किसके पास जाएगी. कपिल सिब्बल की इस दलील पर मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उन्हें टोकते हुए कहा, ‘लेकिन हिंदू धर्म में ऐसा होता है… इसलिए संसद ने मुस्लिमों के लिए कानून बनाया. हो सकता है कि वह हिंदुओं जैसा न हो… संविधान का अनुच्छेद 26 इस मामले में कानून बनाने पर रोक नहीं लगाएगा.’ उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 26 सर्वभौमिक है और ये धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि ये सभी पर लागू होता है.
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