कुल 14 लोग हैं. 12 पुरूष और दो महिलाएं. इन नामों को कोई अभी कुछ समय पहले तक कोई नहीं जानता था. इनकी पहली पहचान समाज से एक अपराधी के तौर पर हुई. फिर दूसरी पहचान तब बनी जब इन्हें जेल में भेजा गया और इसके बाद कैदी नंबर की पहचान के आगे बाकी हर पहचान तकरीबन खत्म हो गई.
लेकिन अब इन सबका एक नया परिचय बना है और यह परिचय है- तिनका तिनका मध्य प्रदेश. इन सभी 14 लोगों में कुछ समानताएं हैं. यह सभी 14 लोग मध्यप्रदेश की अलग-अलग जेलों में बंद हैं. यह सभी अपने किसी अपराध की वजह से जेल में सजा काट रहे हैं. जिस दिन जेल के गेट का दरवाजा बंद हुआ, समाज ने जैसे इन्हें अपनी स्मृति से ही परे कर दिया.
यह 14 लोग भी जैसे अपनी इस गुम हो गई पहचान को स्वीकार कर चले थे लेकिन यह साल इनकी जिंदगी का नया आधार कार्ड लेकर आ गया. इसका आधार वो यज्ञ बना, जिसका हिस्सा इन सभी को बनाया गया. यही है- तिनका तिनका मध्य प्रदेश. यह 14 लोग इस प्रयोग के कथावाचक हैं. लेकिन इस कहानी का एक और जरूरी सिरा है. इसमें 4 बच्चे और एक प्रहरी भी शामिल हैं. इनमें से तीन बच्चे जेल में ही पैदा हुए. असल घर से उनका वास्ता नहीं पड़ा. इन्हीं सलाखों से जीवन को देखने की आदत इन्होंने डाल ली है. बिना किसी अपराध के जेल में आए ऐसे बच्चों की चर्चा भी कहीं नहीं होती. वे भी इस किताब के कथावाचक हैं.
इन्हीं 19 कथावाचकों के साथ रची गई दुनिया की किसी भी जेल की अपनी तरह की पहली सच्ची कथा- तिनका तिनका मध्य प्रदेश. इन्होंने तिनका तिनका के साथ जुड़कर एक नई रोशनी को गढ़ दिया है.
यह यात्रा 2017 में शुरू हुई. भोपाल, इंदौर, उज्जैन, महेश्वर, ग्वालियर-कई जेलों को गौर से देखते हुए उन बंदियों की तलाश की गई जो अपनी जिंदगी को नए सिरे से लिखना चाहते थे, जिनके पास कोई हुनर था लेकिन उन्हें खुद उस हुनर की पहचान नहीं थी. जेलों से वे तमाम जानकारियां ली गईं जिन्हें जाले लग चुके थे. इस ऐतिहासिक दस्तावेज पर काम एक खाली पन्ने पर पेंसिल से तस्वीरें उकेरते-उकेरते शुरू हुआ.
यह तय हुआ कि इसमें रंग भरने का काम भले ही बंदी करेंगे लेकिन पहले जो बिंब उभारने हैं, उसके कच्चे खाके को कागज़ पर उतारना होगा. मैं पेंसिल से कच्चे संकेत बनाती गई. खाका बनता चला गया. फिर उन कागजों को जेल दर जेल पेंट करने वाले बंदियों को सौंपा गया. जेलों ने उन्हें वे सभी रंग दिए जो इस तरह की किताब के लिए माकूल थे. साथ ही दिए कागज, कलम और दी बार-बार हिम्मत कि वे खाली कैनवास को अपने मनचाहे रंगों से भर दें. यही हुआ भी.
जेलों की इस गाथा को 9 हिस्सों में बांटा गया. हर हिस्से में रंगों और तस्वीरों के ज़रिए जेलों की कहानी को गुंथा गया. जेलों के अंदर इंद्रधनुष बनाने की इस कोशिश में कारागार में कारीगरी, जेलों में राष्ट्र-निर्माण, जेलों में हो रहे सृजन और अतीत सोखती सलाखों के नाम से कई अंशों को इसमें जोड़ा गया. एक अंश उनका भी रखा गया जिनके कुछ पश्चाताप हैं. मुट्ठी में काश, सामने बड़ा आकाश के जरिए जेलों के चप्पे-चप्पे को खंगालते जेलों में बदलाव की खुलती खिड़कियों को देखा गया.बाकी और किस्सों के अलावा यहां एक और चुनौती थी. रंग भरने वाले सभी पुरूष थे.
असल जिंदगी में रंगों से पुलकित होनी वाली महिलाओं ने जेल के अंदर रंगों से जैसे अपना नाता तोड़ रखा था. अब इस नाते को जोड़ना था. इन सभी जेलों में तकरीबन हर महिला से यह आवेदन हुआ कि वे चाहें तो अपनी बेदम हो गई कांच की चूड़ी या टूटते- से मंगलसूत्र की ही कोई तस्वीर बना दें या फिर आलते से अपने हाथों और पांव की छाया. बार बार के इस अनुरोध से तस्वीरें आने लगीं. तिनका तिनका का संकल्प पूरा हुआ.
रंगों, तस्वीरों, कविताओं और खुले शब्दों के ज़रिए जेलों में बदलाव लाने का प्रयास जारी है. आप चाहें तो यहां दीये रख दें. दिवाली पर एक दीया जेल के नाम रखकर तो देखिए. जेल में रौशनी तो भरेगी ही, खुद आपके मन का अंधेरा और अवसाद कुछ कम होगा.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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