Hindi In Tamil Nadu: तमिलनाडु में केंद्र सरकार की थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का विरोध जारी है. द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) की वरिष्ठ नेता और लोकसभा सांसद कनिमोझी ने इस विवादास्पद मुद्दे पर अपनी पार्टी के रुख को दोहराया है. उन्होंने साफ-साफ कहा है कि हिंदी कोई हमारी मातृभाषा नहीं है. उन्होंने यह भी पूछा है कि तमिलनाडु के लोगों को हिंदी सीखना क्यों जरूरी है? इससे उन्हें क्या मिलेगा? कनिमोझी ने केंद्र सरकार पर यह भी आरोप लगाया है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने से इनकार करने के कारण तमिलनाडु के लिए निर्धारित 5,000 करोड़ रुपये के फंड को रोक दिया गया है.
‘इंडिया टूडे’ के साथ बाचतीच में डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा, ‘तमिलनाडु में किसी को हिंदी सीखने की क्या जरूरत है? इससे क्या मिलेगा? हिंदी सीखने से हमें क्या हासिल होगा? मैंने कभी हिंदी नहीं सीखी. मेरा बेटा तमिलनाडु के स्कूलों में पढ़ा, उसने हिंदी नहीं सीखी. मुझे नहीं लगता कि तमिलनाडु का हर छात्र हिंदी सीखना चाहता है.’
तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके ने केंद्र पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत तीन भाषाओं के फॉर्मूले के जरिए तमिलनाडु पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया है. हालांकि केंद्र सरकार ने इसका खंडन किया है. इस मुद्दे ने तमिलनाडु में पुराने हिंदी विरोधी आंदोलन की याद ताजा कर दी है. सीएम स्टालिन भी हाल ही में कह चुके हैं कि तमिलनाडु ‘एक और भाषा युद्ध’ के लिए तैयार है, जो 1965 के डीएमके के नेतृत्व वाले हिंदी विरोधी आंदोलन की याद दिलाता है.
‘केंद्र ने 5000 करोड़ का फंड रोक दिया’कनिमोझी ने कहा, ‘थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का मुद्दा डीएमके ने नहीं बल्कि केंद्र सरकार ने शुरू किया. केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत अनिवार्य किया और इसीलिए हमने इसे लागू करने से इनकार कर दिया. इसके बाद केंद्र ने तमिलनाडु के लिए 5,000 करोड़ रुपये का फंड रोक दिया.’ कनिमोझी ने कहा कि तमिलनाडु में अंग्रेजी पढ़ी और सीखी जाती है, जो तमिलनाडु को देश के बाकी हिस्सों और दुनिया से जोड़ती है तो फिर दूसरी भाषा सीखने से क्या फायदा होगा जो हमारी मातृभाषा भी नहीं है?
और क्या-क्या बोलीं कनिमोझी?कनिमोझी ने बताया कि संसद में पारित आधिकारिक भाषा अधिनियम के तहत तमिलनाडु को थ्री लैंग्वेज पॉलिसी से छूट दी गई थी. उन्होंने अतीत का भी संदर्भ दिया जब तमिलनाडु ने हिंदी के खिलाफ व्यापक आंदोलन देखे थे, यहां तक कि जान भी गंवानी पड़ी थी. उन्होंने कहा, ‘उस संघर्ष के बाद, यह वादा किया गया था कि तमिलनाडु में हिंदी या तीन-भाषा नीति नहीं थोपी जाएगी.’
लोकसभा सांसद ने यह भी कहा कि जब 1976 में भाषा नीति तैयार की गई थी, तो उसमें यह भी अनिवार्य किया गया था कि हिंदी भाषी राज्यों को भी थ्री लैंग्वेज पॉलिसी के तहत कम से कम एक दक्षिण भारतीय भाषा सीखनी चाहिए. कनिमोझी ने पूछा, ‘क्या आप मुझे उत्तर भारत का कोई ऐसा राज्य बता सकते हैं जो इस नियम का पालन करता हो? कोई नहीं. यहां तक कि तमिलनाडु के केंद्रीय विद्यालयों में भी केवल हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है, वहां तमिल या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के लिए कोई जगह नहीं बचती.’
कनिमोझी ने कहा, ‘हम किसी को भी हिंदी सीखने से नहीं रोक रहे हैं. अगर कोई छात्र या अभिभावक अपनी इच्छा से इसे सीखना चाहता है तो वे इसे चुनने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन ऐसा जबरदस्ती नहीं किया जाना चाहिए. इससे उनका शैक्षणिक बोझ बढेगा जो कि पहले ही ही बहुत ज्यादा है. हर छात्र कई भाषाओं को सीखने का इच्छुक नहीं होता, ऐसे में उनकी शिक्षा को और जटिल क्यों बनाया जाए?’
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