सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में अपने परिवार की हत्या के अपराध में मौत की सजा पाने वाले एक व्यक्ति को बरी करते हुए बुधवार (16 जुलाई, 2025) को कहा कि जब मानव जीवन दांव पर हो और उसकी कीमत खून हो तो मामले से निपटने में अत्यंत ईमानदारी की आवश्यकता होती है.
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की तीन सदस्यीय पीठ ने दोषी की मौत की सजा की पुष्टि करने वाले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अभियोजन पक्ष के प्रमुख गवाहों की गवाही में बड़े विरोधाभासों को रेखांकित करते हुए कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को संदेह से परे साबित कर दिया है.
कोर्ट ने कहा, ‘हमें यह स्पष्ट करना होगा कि सबूत का मानक बहुत सख्त है और इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता. जब मानव जीवन दांव पर लगा हो और कीमत खून हो तो मामले को अत्यंत ईमानदारी से निपटाया जाना चाहिए.’
आदेश में कहा गया, ‘हम अभियुक्त-याचिकाकर्ता को इस अपराध का दोषी नहीं ठहरा सकते क्योंकि उसका अपराध उचित संदेह से परे साबित नहीं हुआ है.’ अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि बलजिंदर ने 29 नवंबर, 2013 को अपनी पत्नी, बच्चों और एक अन्य रिश्तेदार की हत्या कर दी और दो अन्य को घायल कर दिया.
आरोप के अनुसार, ये हत्याएं करने से कुछ दिन पहले दोषी अपनी सास से मिलने गया था और उसने अपनी पत्नी और बच्चों को जान से मारने की धमकी दी थी जो पैसों को लेकर विवाद के कारण उसे छोड़कर चले गए थे.
बलजिंदर और उसकी बहन को उसके पूर्व पति की ओर से तलाक के समझौते के तहत 35,000 रुपये प्राप्त होने थे. बलजिंदर की सास ने यह रकम वापस करने के लिए उसकी बहन के पति की ओर से गारंटर की भूमिका निभाई थी और जब यह रकम नहीं चुकाई गई तो बलजिंदर और उसकी पत्नी के बीच लगातार झगड़े होने लगे.
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि झगड़ा इस हद तक बढ़ गया था कि बलजिंदर ने पैसे न देने पर अपनी पत्नी और बच्चों को जान से मारने की धमकी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए गवाहों की ओर से एक ही घटना के अलग-अलग समय पर अलग-अलग संस्करण बताए जाने और अपनी सुविधानुसार बयानों से मुकरने की बात को रेखांकित किया.
कोर्ट ने कहा, ‘अभियोजन पक्ष की ओर से घटनाक्रम के समय को लेकर दी गई जानकारी और घटना के बारे में बुनियादी विवरण को लेकर उसके दो प्रमुख गवाहों द्वारा दिए गए बयान बिल्कुल भी मेल नहीं खाते.’ कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही में बड़े विरोधाभास हैं जिससे अभियोजन पक्ष की कहानी में कई कमजोरियों का पता चलता है.
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