असम में अवैध प्रवासियों का मुद्दा, 40 साल में क्यों नहीं हुई कार्रवाई? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार स

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Assam Illegal Immigrants: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (21 मार्च) को केंद्र और असम सरकार से ये सवाल किया कि आखिर क्यों 40 साल बाद भी अवैध बांग्लादेशी नागरिकों का निर्वासन नहीं किया गया है. ये सवाल तब उठा जब अदालत को सूचित किया गया कि पिछले महीने पारित आदेश के अनुसार असम के डिटेंशन कैंप में रखे गए 270 कथित विदेशी नागरिकों में से केवल 13 की पहचान कर उन्हें बांग्लादेश को सौंपा गया है.
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने इस मामले में नाराजगी जताते हुए कहा ‘असम समझौता अगस्त 1985 में हुआ था फिर अब तक निर्वासन क्यों नहीं हुआ? राज्य में लोग इस देरी से नाराज हैं. आखिर क्यों इन्हें वापस नहीं भेजा गया?’ ये समझौता भारत सरकार, असम सरकार, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और असम गण संग्राम परिषद के बीच हुआ था. इसने 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ तारीख तय की थी जिसके बाद बांग्लादेश से असम में एंट्री करने वाले किसी भी व्यक्ति को अवैध प्रवासी माना जाएगा और उसे निर्वासित किया जाएगा.
असम में घुसपैठ का मुद्दा
केंद्र और असम सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि ये संवेदनशील मुद्दा कूटनीतिक माध्यमों से निपटाया जाता है. उन्होंने कहा ‘जब तक बांग्लादेश सरकार इन व्यक्तियों को अपने नागरिक के रूप में स्वीकार नहीं करती तब तक उन्हें निर्वासित नहीं किया जा सकता. हमने बांग्लादेश सरकार को 13 व्यक्तियों की नागरिकता सत्यापित करने और उन्हें स्वीकार करने के लिए मनाया है. ये प्रक्रिया जारी है और आगे भी इस दिशा में काम होगा.’
नागरिकता जांच के लिए विदेश मंत्रालय को भेजे गए फॉर्म
राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि शेष बचे लोगों की नागरिकता की पुष्टि के लिए विदेश मंत्रालय को नेशनल स्टेटस वेरिफिकेशन (NSV) फॉर्म भेज दिए गए हैं. अब विदेश मंत्रालय को संबंधित विदेशी सरकार के साथ बातचीत करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रगति को पॉजिटिव मानते हुए राज्य सरकार को 20 अप्रैल तक इस पर अद्यतन रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया है.
रोहिंग्या शरणार्थियों पर अलग पीठ करेगी फैसला
इस मामले में एक और मुद्दा तब उठा जब सीनियर अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का गलत अर्थ निकालकर अधिकारियों की ओर से रोहिंग्या शरणार्थियों को भी हिरासत में लिया जा सकता है. इस पर सरकार ने स्पष्ट किया कि रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति पर एक अलग पीठ विचार कर रही है. सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि भारत शरणार्थी संधि का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है और इस वजह से कोई भी विदेशी नागरिक इलीगल तरीके से भारत में रहने का अधिकार नहीं रखता.
अवैध प्रवासियों की वापसी तेज करें केंद्र और असम सरकार
अदालत ने निर्देश दिया कि असम सरकार और केंद्र सरकार को अवैध प्रवासियों की नागरिकता जांच कर जल्द से जल्द उन्हें उनके देश वापस भेजने की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 6 मई की तारीख तय की है और सरकार से उम्मीद जताई कि तब तक ज्यादा प्रगति दिखाई देगी.

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