‘यह संविधान पर बुलडोजर चलाने जैसा’, घर गिराने के मामलों पर भड़के सुप्रीम कोर्ट जस्टिस

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Supreme Court on Bulldozer Action: सुप्रीम कोर्ट पिछले साल ही यह साफ कर चुका है कि लोगों के घर गिराया जाना पूरी तरह से असंवैधानिक है. इसके बावजूद देश के अलग-अलग हिस्सों से आए दिन लोगों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने के मामले सामने आते रहते हैं. देशभर में राज्य सरकारें इस तरह की कार्रवाई कर अपना सीना चौड़ा करती रही हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट जस्टिस उज्जवल भुइयां ने राज्य सरकारों के बुलडोजर एक्शन पर आपत्ति जताई है.
जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने शनिवार (22 मार्च) को कहा कि किसी की भी संपत्ति पर बुलडोजर चलाना, संविधान पर बुलडोजर चलाने जैसा है. उन्होंने कहा, ‘आरोपियों के घरों को ध्वस्त करने वाली यह परंपरा परेशान करने वाली और निराशाजनक है. उन्होंने कहा, ‘यह कानून के शासन की मूल अवधारणा का उल्लंघन है और अगर इसे रोका नहीं गया तो यह हमारे न्याय वितरण प्रणाली की मूल संरचना को खत्म कर देगा.’
जस्टिस भुइयां ने कहा, ‘हम मानते हैं कि कोई व्यक्ति आरोपी या अपराधी हो सकता है. लेकिन उसकी मां वहां रहती है, बहन वहां रहती है, पत्नी और बच्चे भी वहां रहते हैं. उनका क्या दोष है? अगर आप उनके घर को तोड़ देंगे तो वे सभी कहां जाएंगे? उनके सिर पर से छत छीन लेना ठीक नहीं है. मैं यह भी कहूंगा कि कोई व्यक्ति किसी अपराध में अभियुक्त है या अपराधी है, इसका मतलब यह नहीं है कि उसका घर ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए.’ जस्टिस भुइयां ने यह बातें पुणे के ‘भारती विद्यापीठ न्यू लॉ कॉलेज’ में एक सालाना इवेंट के दौरान कही.
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी राज्य सरकारों को फटकारजस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने पिछले साल नवंबर में राज्य सरकारों के बुलडोजर एक्शन को असंवैधानिक बताया था. बेंच ने कहा था, ‘घर सबका सपना होता है, ये बरसों का संघर्ष है और सम्मान की निशानी होती है. अगर कोई व्यक्ति सिर्फ आरोपी है, ऐसे में उसकी प्रॉपर्टी को गिरा देना पूरी तरह से कानून के खिलाफ है. अगर घर गिराया जाता है तो इस कार्रवाई को अंजाम देने वाले अधिकारी को साबित करना होगा कि यह एकमात्र रास्ता बचा था. अफसर खुद जज नहीं बन सकते.’

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