सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (20 मार्च, 2025) को एक वकील की इस बात पर फटकार लगा दी कि उन्होंने अपने मुवक्किल की जमानत याचिका में बार-बार ‘सहमति से संबंध’ लिखा था. कोर्ट ने उन पर भड़कते हुए कहा कि इन्हें बुनियादी कानून के बारे में भी नहीं पता है. याचिका में एक नाबालिग लड़की का जिक्र था, जिस पर कोर्ट ने वकील से कहा कि कानून नहीं जानते हो कि जब पीड़िता नाबालिग हो तो सहमति मायने नहीं रखती है.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार वकील ने याचिका में 20 बार ‘सहमति से संबंध’ लिखा था. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘याचिका पढ़कर हम परेशान हो गए. एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) में आपने कम से कम 20 बार सहमति से संबंध लिखा है. लड़की की उम्र क्या है? आपने खुद याचिका में कहा है कि वह एक नाबालिग है.’
बेंच, वकील के साथ इस तथ्य को स्पष्ट करना चाहती थी कि यदि पीड़िता नाबालिग है तो सहमति कोई मायने नहीं रखती. जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘आपने हर पैरा में सहमति से संबंध लिखा है. सहमति से संबंध से आपका क्या मतलब है? आपको कानून की एबीसीडी भी नहीं पता…आप एसएलपी क्यों दायर कर रहे हैं.’
सुप्रीम कोर्ट ने वकील से पूछा, ‘क्या आप एओआर (एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड) हैं?’ एओआर वे वकील होते हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में मामले दायर करने का अधिकार होता है. सुप्रीम कोर्ट वकीलों के लिए एओआर परीक्षा आयोजित करता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘ये लोग AOR कैसे बन गए हैं? आप बुनियादी कानून नहीं जानते? 20 बार आपने सहमति से संबंध लिखा है.’ वकील ने पीठ से माफी मांगी और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जमानत याचिका पर पुलिस और अन्य को नोटिस जारी किया.
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