‘तहसीलदार बन जाओ या फिर जाओ जेल’, गरीबों के घर गिराने वाले डिप्टी कलक्टर से बोला सुप्रीम कोर्ट

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SC on Andhra Pradesh Deputy Collector : आंध्र प्रदेश के एक डिप्टी कलक्टर को सुप्रीम कोर्ट ने तहसीलदार या नायब तहसीलदार बनने का प्रस्ताव दिया है. कोर्ट ने कहा है कि अगर वह नीचे के पद पर जाने के लिए सहमत नहीं तो 2 महीने के लिए जेल जाने को तैयार रहें. हाई कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर गरीबों के घर गिराने के मामले में अधिकारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने यह सख्त रवैया अपनाया है.
8 जनवरी, 2014 को गुंटूर में तहसीलदार के पद पर काम कर रहे टाटा मोहन राव ने 80 से ज्यादा पुलिस वालों के साथ जाकर गरीबों के घर गिरवा दिए थे. इन लोगों को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने अंतरिम राहत दी हुई थी. हाई कोर्ट ने इसे अपनी अवमानना करार देते हुए राव को 2 महीने की सजा दी थी. इसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने पूछा था कि इस अधिकारी की भर्ती किस पद पर हुई थी. इसके जवाब में कोर्ट को बताया गया कि उसकी पहली नौकरी नायब तहसीलदार के पद पर थी. अब तक उसके 2 प्रमोशन हो चुके हैं. इस समय वह डिप्टी कलक्टर है. कोर्ट ने कहा था कि अगर वह वापस नायब तहसीलदार बनने को तैयार है तो जेल भेजने का आदेश रद्द कर दिया जाएगा.
डिप्टी कलक्टर ने सुप्रीम कोर्ट के राय मानने की किया इनकार
मंगलवार, 6 मई को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट पहुंचे टाटा मोहन राव ने नीचे के पद पर जाने से मना किया. इससे भड़के जजों ने कहा, “अगर आप अड़े हुए हैं, तो जेल जाने को तैयार रहिए. आपकी नौकरी जाएगी. हम इतनी सख्त टिप्पणी करेंगे कि भविष्य में भी कोई नौकरी नहीं देगा.”
अधिकारी के इनकार से भड़का सुप्रीम कोर्ट
अधिकारी ने अपने परिवार की दुहाई दी. इस पर जस्टिस गवई ने कहा, “जब 80 पुलिस वालों को लेकर गरीबों का घर तोड़ने गए थे, तब उन्होंने भी अपने बच्चों की दुहाई दी थी. हमने आपके बच्चों का ख्याल करते हुए ही जेल जाने से बचाने की कोशिश की. आप समझते हैं कि हाई कोर्ट की अवमानना करके आप ऐसे ही बच जाएंगे. ऐसा नहीं होगा.”
कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार से करीबी होने के चलते अधिकारी यह न सोचें कि उसे कुछ नहीं होगा. हालांकि, कोर्ट ने टाटा राव के लिए पेश वरिष्ठ वकील के अनुरोध पर उन्हें जेल भेजने का आदेश नहीं दिया. कोर्ट ने शुक्रवार (9 मई) को आगे सुनवाई की बात कही है. हालांकि, कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अधिकारी के पास डिमोशन या जेल जाने का ही विकल्प है.

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