मुख्तार अंसारी केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, उमर अंसारी की याचिका खारिज, योगी सरकार को म

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उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से एक और बड़ी कानूनी जीत मिली है. कुख्यात माफिया और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत की जांच की मांग को लेकर उसके बेटे उमर अंसारी ने जो याचिका दाखिल की थी, उसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. उमर अंसारी ने कोर्ट से मुख्तार की जेल में हुई मौत की एफआईआर दर्ज कराने और एसआईटी (विशेष जांच दल) के गठन की मांग की थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने “हस्तक्षेप योग्य न मानते हुए” खारिज कर दिया. 
यह फैसला योगी सरकार की माफिया विरोधी मुहिम को न्यायपालिका से मिली एक और पुष्टि है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में प्रदेश सरकार अपराधियों पर लगातार शिकंजा कस रही है. कोर्ट के इस फैसले को संगठित अपराध के खिलाफ सरकार की नीति की बड़ी वैधता के रूप में देखा जा रहा है. 
मुख्तार अंसारी और उसका आपराधिक इतिहास
मुख्तार अंसारी का नाम उत्तर प्रदेश के सबसे कुख्यात अपराधियों में शुमार रहा है. गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद निवासी मुख्तार पर हत्या, अपहरण, रंगदारी, जबरन वसूली, गैंगस्टर एक्ट और एनएसए समेत 65 से अधिक मुकदमे दर्ज थे. 1980 के दशक से सक्रिय मुख्तार अंसारी ने संगठित अपराध की दुनिया में कदम रखा और बाद में राजनीति को भी अपना हथियार बनाया.
उसके खिलाफ दर्ज प्रमुख मामलों में कृष्णानंद राय हत्याकांड, जेलर मर्डर केस और रुगटा हत्याकांड जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं. उसे उत्तर प्रदेश की विभिन्न अदालतों से अब तक आठ मामलों में सजा सुनाई जा चुकी थी. इनमें से दो मामलों में आजीवन कारावास और शेष में 5 से 10 वर्ष तक की सजाएं दी गई थीं.
जेल में इलाज के दौरान हुई थी मौत
28 मार्च 2024 को मुख्तार अंसारी की मौत बांदा जेल में इलाज के दौरान हुई थी. उसके बेटे ने इस मौत को संदिग्ध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, लेकिन अब कोर्ट ने साफ कर दिया है कि यह मामला जांच या हस्तक्षेप के योग्य नहीं है.
योगी सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस नीति’ को समर्थन
यह फैसला साफ दर्शाता है कि योगी सरकार द्वारा अपराध और अपराधियों के खिलाफ अपनाई गई ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को न केवल जनता का, बल्कि न्यायपालिका का भी समर्थन मिल रहा है. प्रदेश सरकार की सशक्त पैरवी और अभियोजन के चलते अब तक कई माफिया सरगनाओं को सजा दिलाई जा चुकी है. 
यह निर्णय इस बात का भी प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश अब माफियाओं की सुरक्षित पनाहगाह नहीं, बल्कि कानून का सख्ती से पालन करने वाला राज्य बन चुका है. कोर्ट की यह टिप्पणी कि यह हस्तक्षेप योग्य मामला नहीं है, सरकार के कामकाज पर न्यायिक भरोसे की मिसाल बन गई है.

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