अब एशिया में चीन की नहीं भारत की होगी धाक, पड़ोसी मुल्क श्रीलंका देगा साथ, नए राष्ट्रपति ने दे

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India Sri Lanka Relation: श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अरूणा दिसानायके अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आए. श्रीलंका में जब से दिसानायके ने अपना कार्यभार संभाला है, उसके बाद से ये उनका पहला विदेशी दौरा था. भारत को अपने पहले दौरे के लिए चुनना श्रीलंका और भारत की मित्रता की तस्वीर कही जा सकती है. क्योंकि जब से दिसानायके चुनाव जीते और लेफ्ट पार्टियों की मदद से सत्ता में आए, तब से इस बात के क़यास लगाए जा रहे थे कि दिसानायके की भारत नीति पूर्ववर्ती सरकारों से एकदम अलग हो सकती है. कई विश्लेषक यह मान रहे थे कि दिसानायके भारत की अपेक्षा चीन को ज्यादा तरजीह दे सकते हैं, लेकिन दिसानायके के भारत दौरे ने उन सभी अफवाहों पर विराम लगा दिया.
श्रीलंका के नए हीरो के तौर पर उभरे दिसानायके
गोटबाया राजपक्षे के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों के बाद दिसानायके श्रीलंका की जनता के नए हीरो के तौर पर उभरे. यही वजह है कि पहले राष्ट्रपति चुनाव और फिर संसदीय चुनाव में उनकी पार्टी व गठबंधन दल बहुमत से सत्ता में आए. श्रीलंका में आर्थिक संकट आने की एक बड़ा कारण चीन का श्रीलंका में बढ़ता प्रभाव था.
चीन अपने कर्ज के जाल में श्रीलंका को लगातार फंसाता जा रहा था. कोलंबो पोर्ट से लेकर हंबनटोटा बंदरगाह तक तमाम मुद्दों को लेकर श्रीलंका के नागरिक चीन को संदेह के नज़रिए से देख रहे थे. हंबनटोटा पोर्ट को चीन ने लंबे समय के लिए लीज पर ले रखा है, जहां पर कई बार चीन अपने जासूसी जहाज भी भेजता रहा है, जो कि भारत के लिए चिंताजनक बात रही है.
अनुरा दिसानायके ने 16 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ साझा बयान जारी करते हुए कहा कि श्रीलंका अपनी ज़मीन का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिये नहीं होने देगा. यहां पर श्रीलंका के राष्ट्रपति ने चीन का नाम तो नहीं लिया, लेकिन वैश्विक राजनीति पर नजर रखने वाले लोगों को यह पता है कि इस बयान से सबसे ज़्यादा झटका चीन को लगा है. चीन के साथ साथ उन लोगों को भी इस एक बयान ने बड़ा झटका दिया है जो दिसानायके के सत्ता में आने के बाद यह मान बैठे थे कि अब भारत और श्रीलंका के रिश्ते सामान्य नहीं रहेंगे.
चीन की वजह से सड़कों पर उतरी थी श्रीलंका की जनता
दरअसल श्रीलंका सरकार भी यह अच्छी तरह से जानती है कि भारत ही उसका सच्चा हितैषी है ना कि चीन, क्योंकि चीन अपने कर्ज के बोझ तले श्रीलंका को दबाता रहा और 2022 तक श्रीलंका कंगाल हो गया, जनता को सड़कों पर उतरना पड़ा और तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा.
दिसानायके यह बात अच्छी तरह समझते हैं कि अगर उन्हें श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को सुधारना है तो भारत जैसे सच्चे मित्र देश का साथ बेहद आवश्यक है. इस समय श्रीलंका का सबसे बड़ा मुद्दा भी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना ही माना जा रहा है. इसके साथ ही ब्रिक्स संगठन में शामिल होने के लिए भी श्रीलंका, भारत की तरफ़ उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है. अपनी भारत यात्रा के दौरान के श्रीलंका के राष्ट्रपति ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को श्रीलंका दौरा करने का आमंत्रण भी दिया है.
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