Kumbh Mela: पौराणिक मान्यता है कि देवों और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से अंतिम रत्न के रूप में अमृत की प्राप्ति हुई थी. इसे सुरक्षित रखने और असुरों की पहुंच से दूर रखने के लिए भगवान विष्णु अमृत का कुंभ (घड़ा) ले जा रहे थे तभी उसको लेने और छीनने के प्रयास में अमृत की चार बूंदें गिर गईं. अमृत की ये बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन के चार तीर्थों पर धरती पर गिरीं.
प्रयाग की महिमा
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ॥ अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा॥ तुलसी दास
तीर्थ वह स्थान होता है जहां भक्त मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं. वैसे तो तीर्थ अनेकों हैं पर यहां हम सिर्फ कुंभ से जुड़े चार तीर्थों की बात कर रहे हैं. कुंभ का आयोजन हर तीन साल में कुंभ मेले के रूप में चार तीर्थों में मनाया जाता है जो चारों तीर्थों पर बारी-बारी से आयोजित किया जाता है. प्रयाग या प्रयाग के संगम को तीर्थराज, ‘तीर्थों का राजा’ के रूप में जाना जाता है और यहां हर बारह साल में एक बार पड़ने वाले कुंभ की विशेष मान्यता है.
कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ का अंतर
कुंभ मेला हर तीन साल में चारों जगहों पर यानी प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में लगता है. वहीं, अर्धकुंभ हर छह साल में हरिद्वार और प्रयागराज में लगता है. महाकुंभ हर 144 साल में प्रयागराज में लगता है.
यूनेस्को की सूची में कुंभ मेला : मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत
कुंभ मेले को 2017 में यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया था. पृथ्वी पर सबसे बड़ा शांतिपूर्ण मानव समागम माने जाने वाले कुंभ में तीर्थयात्री, जन्म और मृत्यु के अनंत चक्र से मुक्ति मिलने के विश्वास के साथ पवित्र नदियों- गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करते हैं. कुंभ मेला परंपरा का विश्व भर में रहने वाले करोड़ों हिंदुओं के जीवन में आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है.
कुंभ की खगोलीय खगोलीय तारीख
प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर इसका आयोजन तब किया जाता है जब राशि चक्र में बृहस्पति मेष या वृषभ राशि में होता है और सूर्य और चंद्रमा ग्रेगोरियन कैलेंडर के जनवरी-फरवरी के आसपास हिंदू महीने माघ के दौरान मकर राशि में होते हैं।
प्रयागराज में मुख्य स्नान
प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान, छह मुख्य स्नान दिवस होते हैं-
1. पौष पूर्णिमा
2. मकर संक्रांति
3. मौनी अमावस्या
4. बसंत पंचमी
5. माघीपूर्णिमा
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