राजस्थान विश्वविद्यालय में इतिहास पर पीएचडी कर चुके प्रोफेसर वेदप्रकाश शर्मा ने बाबरनामा और अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों के हवाले से इस बारे में कुछ अहम जानकारियां साझा कीं। सपा सांसद रामजीलाल सुमन द्वारा राज्ससभा में मेवाड़ के शासक रहे महाराणा सांगा को लेकर जो बयान दिया, उस पर देश भर से तीखी प्रतिक्रियाएं आईं। सिर्फ राजनेता ही नहीं इतिहासकार भी सुमन के इस बयान को खारिज कर रहे हैं। सुमन ने राज्यसभा में बयान दिया था कि हिंदुस्तान में बाबर को राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराने के लिए आमंत्रित किया था।
लेकिन इतिहासकार प्रोफेसर वेदप्रकाश शर्मा ने बाबरनामा और अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों के हवाले इस बयान को गलत बताया है। उन्होंने कहा, महाराणा सांगा भारतीय इतिहास के एक अमरवीर थे, जिन्होंने 1517 में खातोली और 1518 में बाड़ी के युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित किया तथा फरवरी, 1527 में बाबर को कड़ी चुनौती दी। शर्मा ने कहा कि खातोली और खंडार जैसे युद्धों में लोदी को बुरी तरह पराजित करने के बाद भी क्या सांगा को लोदी को हराने के लिए बाबर को बुलाने की जरूरत थी।
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बाबरनामा किताब
– फोटो : अमर उजाला
महाराणा सांगा की प्रमुख विशेषताएं और उपलब्धियां
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) भारतीय इतिहास के एक महान योद्धा और कुशल रणनीतिकार थे। उन्होंने न केवल वीरता का परिचय दिया, बल्कि अपने शासनकाल में मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य के रूप में स्थापित किया। उनकी प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं…
अद्वितीय वीरता और साहस
राणा सांगा महान योद्धा थे, जिन्होंने अपने शरीर पर 80 से अधिक घाव सहने के बावजूद युद्ध भूमि में अंतिम सांस तक संघर्ष किया। उन्होंने एक आंख, एक हाथ और एक टांग गंवाने के बाद भी युद्ध लड़ना जारी रखा, जो उनकी अपराजेय इच्छा शक्ति को दर्शाता है।
कुशल सैन्य रणनीतिकार
उन्होंने खातोली (1517), बाड़ी (1518) और खानवा (1527) जैसे महत्वपूर्ण युद्धों में अपनी सैन्य रणनीति का परिचय दिया। उनकी सेना में राजपूतों के साथ-साथ अफगान, मराठा और आदिवासी सैनिक भी शामिल थे, जो उनकी कुशल सैन्य नीति को दर्शाता है। वे गुरिल्ला युद्ध और खुली लड़ाई दोनों में माहिर थे।
राजपूत संघ का गठन
राणा सांगा ने राजपूत संघ की स्थापना कर राजपूत शक्ति को संगठित करने का प्रयास किया। उनके नेतृत्व में कई राजपूत राजा एकजुट हुए और विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़े।
विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध प्रतिरोध
उन्होंने दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इब्राहिम लोदी, गुजरात के सुल्तान और मालवा के शासकों को युद्ध में पराजित किया। बाबर के विरुद्ध 1527 में खानवा का युद्ध लड़ा जो भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना के लिए निर्णायक युद्ध था।
धर्मनिरपेक्षता और न्यायप्रियता
वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे और उनकी सेना में विभिन्न जाति और समुदायों के लोग शामिल थे।
उन्होंने अपने शासन में कठोर लेकिन न्यायपूर्ण प्रशासन लागू किया और प्रजा की भलाई के लिए कार्य किए।
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किताब का पन्ना
– फोटो : अमर उजाला
उन्होंने गुजरात, मालवा और दिल्ली के शासकों के खिलाफ कूटनीतिक चालें चलीं, जिससे वे बार-बार अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने में सफल हुए। उन्होंने अपने विरोधियों को पराजित कर राजस्थान और उत्तर भारत में अपनी शक्ति को सर्वोच्च स्थान दिलाया।
राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान का प्रतीक
वे मातृभूमि की रक्षा के लिए जीवन भर संघर्षरत रहे और कभी विदेशी ताकतों के सामने नहीं झुके। उनका जीवन और बलिदान राजस्थान का स्वाभिमान और राष्ट्रभक्ति का प्रेरणास्त्रोत बना। महाराणा सांगा न केवल राजस्थान बल्कि संपूर्ण भारत के इतिहास में एक अमर योद्धा और महान शासक के रूप में जाने जाते हैं। उनकी वीरता, सैन्य कौशल और कूटनीतिक कुशलता ने भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। उनका जीवन युद्ध, संघर्ष, साहस और देशभक्ति की अद्वितीय मिसाल है।
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