जानकारी के मुताबिक, छीतर बैरवा की बारात रविवार को अजमेर जिले के तिहारी गांव जानी थी। शनिवार को घर में हल्दी, मेहंदी और खाने की तैयारियां चल रही थीं। इसी बीच दोपहर करीब तीन बजे अचानक तेज आंधी और बारिश शुरू हो गई। इस आपदा से हलवाइयों और लाइट वालों का काम रुक गया। इसी चिंता में पिता मूलचंद बैरवा को घबराहट होने लगी और वे अचानक बेहोश होकर गिर पड़े।
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परिजनों ने उन्हें नजदीकी निजी क्लीनिक पहुंचाया, जहां उनका बीपी बहुत कम पाया गया। डॉक्टरों ने उन्हें तुरंत मालपुरा अस्पताल ले जाने की सलाह दी। लेकिन रास्ते में ही मूलचंद की सांसें थम गईं। अस्पताल पहुंचते-पहुंचते वे दुनिया छोड़ चुके थे। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
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पिता की मौत के बाद शादी की खुशियां मातम में बदलीं
– फोटो : अमर उजाला
मूलचंद अपने इकलौते बेटे की शादी की तैयारियों में पूरे मन से लगे हुए थे। उन्होंने शादी के खाने की जिम्मेदारी खुद संभाल रखी थी। मैरिज गार्डन में करीब 800 मेहमानों के लिए पूड़ी, दाल, रायता, मिठाई और नमकीन की व्यवस्था की गई थी। लेकिन जिस समय यह खाना परोसे जाने की तैयारी थी, उसी समय परिवार के मुखिया की मौत की खबर से माहौल मातम में बदल गया।
महिलाएं जब कलश लेकर वापस लौटीं तो वहां गीत-संगीत का माहौल था, लेकिन जैसे ही मौत की खबर पहुंची, रोने-बिलखने की आवाजें गूंज उठीं। मोहल्ले और समाज के लोग रात भर साथ रहे। मूलचंद की बुजुर्ग मां कई बार बेहोश हो गईं।
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पिता की मौत के बाद शादी की खुशियां मातम में बदलीं
– फोटो : अमर उजाला
जिस दिन पिता का अंतिम संस्कार हुआ, उसी दिन रात में बेटे को हल्दी लगाई गई। मां ने बेटे को दूल्हा बनाकर विदा किया। रविवार को बारात रवाना हुई, जिसमें रिश्तेदार और समाज के करीब 60 लोग शामिल हुए। शादी की सभी रस्में अत्यंत सादगी से निभाई गईं। दूल्हे छीतर की शादी तिहारी गांव में तय थी। चिंदीरी की रस्म नहीं हुई। बारात लेकर पहुंचे समाजजनों ने सिर्फ फेरों की औपचारिकता निभाई।
‘हलवाई काम कर रहे हैं, आप शाम को आकर देख लेना…’
परिजनों ने बताया कि मूलचंद ने शनिवार को अपने बहनोई से कहा था कि आप घर जाकर आराम करो, हलवाई काम कर रहे हैं, शाम को आकर व्यवस्था देख लेना। उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि कुछ ही घंटों में उनकी तबीयत बिगड़ जाएगी और वह जीवन की अंतिम सांस ले लेंगे। शादी के ठीक पहले मौसम का बदलना, काम रुक जाना और मेहमानों के आने की चिंता, शायद यही चिंता उन्हें ले डूबी। समाज के लोगों का कहना है कि मूलचंद किसी बीमारी से ग्रसित नहीं थे और पूरी तरह स्वस्थ थे।
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एक पिता का अधूरा सपना, एक बेटे की मजबूरी में निभाई शादी
यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, एक समाज की पीड़ा बन गई। एक पिता जो अपने इकलौते बेटे को घोड़ी पर चढ़ते देखना चाहता था, वो सपना अधूरा रह गया। लेकिन सामाजिक रीति-रिवाजों और परिस्थितियों को देखते हुए शादी टालना संभव नहीं था। इसलिए पिता की चिता ठंडी होने से पहले बेटा दूल्हा बना और मां ने आंखों में आंसू लिए उसे विदा किया।
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