राजस्थान के जोधपुर शहर में खासकर भीतरी इलाकों में कचरा उठाने के लिए आजादी से पहले से ही गधों का इस्तेमाल होता रहा है। पहले तंग और ऊंचाई वाले इलाकों से कचरा ढोने के लिए भैंसों का सहारा लिया जाता था, लेकिन 1980 के दशक के बाद से यह जिम्मेदारी गधों ने संभाल ली। एक समय ऐसा था जब एकीकृत नगर निगम के दौरान शहर के भीतरी इलाकों के पांच वार्डों में 85 गधे नियमित रूप से कचरा ढोने का काम करते थे। लेकिन पिछले पांच वर्षों में हालात बदल गए। वार्डों की संख्या घटती-बढ़ती रही, पर गधों की संख्या में लगातार कमी आती गई।
वर्तमान स्थिति यह है कि नगर निगम ने भीतरी शहर में कचरा परिवहन के लिए जो टेंडर जारी किया था, उसमें 50 गधों का प्रावधान था। इसके लिए करीब 84 लाख रुपये का बजट तय किया गया और प्रति गधा प्रतिदिन 150 रुपये की दर रखी गई थी। लेकिन जब टेंडर फाइनल हुआ तो दर घटकर 140 रुपये प्रतिदिन प्रति गधा तय हुई। इसके बावजूद ठेकेदारों को पर्याप्त गधे नहीं मिल पा रहे हैं। नतीजतन आधे से ज्यादा वार्डों में गधों के बजाय बाइक से कचरा उठाना पड़ रहा है।
नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि बाइक से कचरा उठाने की यह व्यवस्था खुल्लमखुल्ला टेंडर की शर्तों का उल्लंघन है और इस वजह से भ्रष्टाचार की आशंका भी जताई जा रही है। जानकारों का मानना है कि यदि निगम ने गधों के बजाय बाइक से कचरा परिवहन का टेंडर जारी किया होता तो ज्यादा फर्मों की भागीदारी होती, प्रतिस्पर्धा बढ़ती और निगम को राजस्व में भी फायदा होता।
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पुराने आंकड़ों पर नजर डालें तो 2018 में वार्ड नंबर 14 में 30, वार्ड 15 में 10, वार्ड 34 में 10, वार्ड 35 में 20 और वार्ड 48 में 15 गधे लगाए गए थे। उस समय प्रति गधा प्रतिदिन 130 रुपये की दर थी। इन इलाकों की गलियां इतनी तंग थीं कि वहां बाइक भी नहीं पहुंच पाती थी, इसलिए गधों की अहम भूमिका थी।
जानकारी के अनुसार बकाया भुगतान समय पर नहीं होने से गधे मालिकों ने अब गधे देने से मना कर दिया है। कुछ वार्डों में पहले गधे लगाए गए थे लेकिन धीरे-धीरे उनकी संख्या घटती गई और अब वहां बाइक से या अन्य संसाधनों से कचरा उठाया जा रहा है।
उदाहरण के तौर पर निगम उत्तर के वार्ड नंबर 20 ब्रह्मपुरी की पुरानी बस्तियों की तंग गलियों में कचरा उठाने के लिए कुल 18 पॉइंट हैं जबकि वार्ड नंबर 21 में 20 पॉइंट हैं। इन दोनों वार्डों में भी गधों से कचरा ढोने की व्यवस्था थी लेकिन अब वहां भी बाइक से कचरा उठाया जा रहा है। ऐसे में नगर निगम, ठेकेदार और आम लोग सभी इस समस्या से परेशान हैं और पारंपरिक कचरा परिवहन व्यवस्था को बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा है।
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