राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने सोमवार को सदन में तारांकित प्रश्न के द्वारा कहा कि स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2.0 के क्रियान्वयन पर शहरी क्षेत्रों में इस मिशन के तहत करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी खुले में शौच से मुक्ति नहीं मिल पाई है। उन्होंने इस मामले में केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर को आड़े हाथों लिया। उनका कहना था कि इस मिशन के लक्ष्य से देश अभी भी कोसो दूर है।
इस दौरान सांसद नीरज डांगी का कहना था कि स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 का प्रारंभ एक अक्तूबर 2021 को पांच साल के लिए किया गया था। लेकिन, इसके कार्यान्वयन के लिए काम में ली जा रही प्रौद्योगिकी और इस योजना के अंतर्गत शहरी क्षेत्रों में खुले में शौच में प्रतिवर्ष दर्ज की गई औसतन गिरावट को देखते हुए केंद्र सरकार के इस मिशन द्वारा खुले में शौच से मुक्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने में अभी भी कई साल लग सकते हैं। जबकि इस मिशन का 100 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्ति के लिए निर्धारित एक वर्ष ही शेष रहा है।
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सांसद डांगी के अनुसार, स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम-यू) दो अक्तूबर 2014 को शुरू किया गया था, जिसका प्रमुख उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) बनाना था। अक्तूबर 2019 में 35 राज्यों, संघ राज्य क्षेत्रों के 4371 शहरी निकाय खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है। 63.74 लाख व्यक्तिगत घरेल शौचालय इकाइयों के निर्माण बताया गया है, परंतु मौके पर इन इकाईयों का अता-पता नहीं है। वर्तमान में 1177.22 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इससे 4889 शहरों एवं स्थानीय निकायों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है। परंतु असलियत में देखा जाए तो आज भी ये निकायें खुले में शौच से मुक्त नहीं हैं।
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डांगी ने केन्द्र सरकार से मांग कि की इस स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के अंतर्गत शहरी क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति का आंकलन कराया, जाकर इस मिशन के तहत व्यय होने वाली राशि के दुरुपयोग को रोकने सहित उचित प्रबंधन किया जाना चाहिए। ताकि लक्ष्य अनुसार शहरी क्षेत्रों का कायाकल्प हो सके।
ये दिया आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री ने जवाब
डांगी के प्रश्न के जवाब में आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री ने बताया कि एसबीएम-यू 2.0 के तहत प्रयुक्त जल प्रबंधन भी एक नया घटक जोड़ा है, जिसका उद्देश्य 2011 की जनगणना के अनुसार एक लाख से कम आबादी वाले शहरों में मल-कीचड़ और सेप्टेज का समग्र निपटान करना है। केन्द्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन (सीपीएचईईओ) के मैनुअल और समय समय पर जारी की गई एडवाइजरी में उल्लेखित किसी भी प्रामाणिक प्रौद्योगिकी को चुनने की अनुमति दी गई है। परंतु वर्तमान में इस घटक एवं प्रौद्योगिकियों पर स्थानीय निकायों, राज्य सरकारों द्वारा कोई कार्य नहीं किया जा रहा है।