अब राजस्थान के सरकारी मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में असहाय, मानसिक रूप से कमजोर, लावारिस और असक्षम लोगों को इलाज के लिए पहचान पत्र नहीं दिखाना होगा। अगर उनके पास कोई पहचान पत्र नहीं है, तो भी उन्हें इलाज से इनकार नहीं किया जाएगा। ऐसे मरीजों को अब अस्पतालों में मुफ्त इलाज और दवाइयां मिल सकेंगी। यह फैसला सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग की पहल पर लिया गया है, और इसके बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग ने आदेश जारी किए हैं।
प्रदेश में हजारों ऐसे लोग हैं जो असहाय, विमंदित, लाचार या असक्षम हैं। कई लोग किसी एनजीओ के आश्रय स्थलों में रहते हैं या किसी तरह अपना जीवन गुजार रहे हैं। इनके पास आधार, जनाधार या कोई पहचान पत्र नहीं होता। जब ये अस्पतालों में इलाज के लिए जाते हैं, तो पहचान पत्र न होने की वजह से उन्हें मुफ्त इलाज और दवाइयां नहीं मिलती थीं। इसी समस्या को देखते हुए अब सरकार ने यह नई व्यवस्था लागू की है, जिससे बिना पहचान पत्र के भी इन जरूरतमंद लोगों को इलाज मिल सके।
चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव अम्बरीश कुमार ने जो आदेश जारी किए हैं, उसमें कहा गया है कि अगर कोई संस्था किसी असहाय मरीज को अस्पताल लेकर आती है, तो उसे अपने लैटरहेड पर सिर्फ इतना लिखना होगा कि मरीज असहाय है और उसके पास कोई पहचान पत्र नहीं है। अगर कोई मरीज खुद आता है और कहता है कि उसके पास पहचान पत्र नहीं है, तो भी उसे प्राथमिकता के साथ पूरा इलाज दिया जाएगा।
विभाग ने यह भी कहा है कि हर अस्पताल में ऐसे मरीजों की मदद के लिए एक नोडल अधिकारी और दो कर्मचारी तैनात किए जाएंगे। साथ ही, अस्पतालों को अपने आसपास की उन स्वयंसेवी संस्थाओं में, जहां ऐसे लोग रहते हैं, हर महीने दो बार स्वास्थ्य जांच शिविर लगाना होगा।
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कुलदीप रांका, अतिरिक्त मुख्य सचिव, सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग, ने कहा कि प्रदेश में हजारों ऐसे असहाय लोग हैं जिनके पास कोई पहचान पत्र नहीं है। सरकार की योजनाएं होने के बावजूद, इन्हें अब तक अस्पतालों में मुफ्त इलाज नहीं मिल पाता था। इसी वजह से चिकित्सा शिक्षा विभाग से यह अनुरोध किया गया था कि ऐसे लोगों के लिए पहचान पत्र की अनिवार्यता खत्म की जाए। यह अच्छी बात है कि अब विभाग ने इसके लिए आदेश जारी कर दिए हैं।