Rajasthan: प्रवासियों ने उतारा माटी का कर्ज, प्रदेश में बारिश की बूंदों को सहेजने के लिए बनवा रहे तालाब

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राजस्थान सरकार ने राज्य में जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए प्रवासी राजस्थानियों से भी सहयोग मांगा था। ‘कर्मभूमि से मातृभूमि’ अभियान के तहत प्रवासी राजस्थानियों ने ऐसा भावनात्मक जुड़ाव दिखाया कि उन्होंने साल भर का लक्ष्य महज तीन महीनों में ही पूरा कर डाला। इस अभियान ने देश-विदेश में नाम कमा रहे प्रवासी राजस्थानियों को उनकी मिट्टी से फिर से जोड़ दिया।

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मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस अभियान के तहत वर्षा जल संग्रहण के लिए पांच हजार संरचनाएं, तालाब आदि बनाने का वार्षिक लक्ष्य तय किया था। लेकिन प्रवासियों के उत्साह ने इसे एक जनांदोलन बना दिया और अभियान शुरू होने के महज तीन महीनों में ही वर्षा जल संरक्षण का वार्षिक लक्ष्य लगभग पूरा हो गया।

अभियान के अंतर्गत अगले चार वर्षों में राज्य में लगभग 45,000 रिचार्ज/जल संरक्षण संरचनाओं के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। इसी क्रम में इस वित्तीय वर्ष के लिए 5,000 संरचनाओं के निर्माण का लक्ष्य था, जिसके मुकाबले जून तक ही 4,918 संरचनाएं बनकर तैयार हो चुकी हैं। वहीं, ग्राम विकास अधिकारियों द्वारा ई-पंचायत मोबाइल ऐप के माध्यम से 45,000 संरचनाओं के लक्ष्य के मुकाबले 37,000 रिचार्ज स्थलों का चयन भी कर लिया गया है।

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वर्तमान में प्रदेश की 216 पंचायत समितियां भूजल की दृष्टि से अतिदोहित श्रेणी में आ चुकी हैं। गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए वर्षा जल संरक्षण ही एकमात्र समाधान है। इसी के तहत राज्य के 41 जिलों की 11,266 ग्राम पंचायतों में रिचार्ज शॉफ्ट बनाए जा रहे हैं। साथ ही सूख चुके कुओं, बोरिंग और हैंडपंपों के माध्यम से भी वर्षा जल का कृत्रिम पुनर्भरण किया जा रहा है। क्षेत्रीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कम लागत वाली जल संरक्षण संरचनाएं जैसे रिचार्ज पिट, टैंक, रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम आदि भी बनाए जा रहे हैं।

अभियान के नोडल अधिकारी, भूजल विभाग के सुपरिंटेंडिंग हाइड्रोलॉजिस्ट विनय भारद्वाज कहते हैं कि राजस्थान के इतिहास में जल प्रबंधन एक विशिष्ट विज्ञान रहा है। बावड़ियां, कुंड, जोहड़ और तालाब न केवल जल स्रोत थे बल्कि सामाजिक मेलजोल के भी केंद्र हुआ करते थे। ‘कर्मभूमि से मातृभूमि’ अभियान इस पारंपरिक विरासत को आधुनिक तकनीक और जनभागीदारी से जोड़ता है। पहले जहां राजा-महाराजा जल संरक्षण की जिम्मेदारी उठाते थे, अब यह जिम्मेदारी जनता और प्रवासी राजस्थानियों ने अपने हाथों में ले ली है।

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