प्रदेश सरकार के चिकित्सा विभाग ने एक आदेश जारी कर भामाशाहों द्वारा अस्पतालों में दान दी जाने वाली एम्बुलेंस, जांच मशीनों और उपकरणों के साथ ही इन्हें चलाने के लिए 5 साल का डीजल, ड्राइवर तथा ऑपरेटर की सैलेरी भी दानदाता से ही लेने का आदेश निकाला है।
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पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने इस आदेश पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि राजस्थान की भाजपा सरकार दिवालिया होने की तरफ आगे बढ़ रही है। इसलिए भामाशाहों द्वारा चिकित्सा व्यवस्थाओं को बेहतर करने के लिए दान दी जाने वाली जरूरी वस्तुओं पर अजीबो-गरीब शर्तें लगा रही है।
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गहलोत ने कहा कि दानदाता हमेशा अस्पतालों से पूछकर ही उनकी जरूरत का सामान देते हैं। इससे अस्पतालों एवं मरीजों दोनों को लाभ मिलता है। उन्होंने कहा कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करे। इसमें कोई दानदाता सहयोग करता है तो सरल से सरल प्रक्रिया से उनका सहयोग लेकर उसे सरकारी व्यवस्था में शामिल किया जाए। सरकार का यह आदेश दानदाताओं को हतोत्साहित करने वाला है।
उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार राइजिंग राजस्थान में 35 लाख करोड़ रुपए के एमओयू कर निवेशकर्ता/ उद्यमी को तमाम छूट देकर यहां निवेश करवाने का दावा कर रही है। वहीं दूसरी तरफ दान में आने वाले सामान को भी इस्तेमाल करने में अक्षम है। जब सरकार दान में आ रहे सामान को इस्तेमाल करने की क्षमता ही नहीं रख पा रही तो वह निवेशकर्ताओं को छूट देने की क्षमता कहां से लाएगी?
गौरतलब है कि स्वास्थ्य निदेशालय ने गुरुवार को एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि सरकारी अस्पतालों, सीएचसी, पीएचसी पर दान में दिए जाने वाले मेडिकल उपकरण व एम्बुलेंस तभी ली जाएगी जब दानदाता उनके 5 साल तक के संचालन का खर्च उठाने के लिए तैयार हों। यही नहीं एम्बुलेंस चलाने के लिए स्टाफ और ड्राइवर के 5 साल तक के वेतन का बंदोबस्त भी दानदाता को ही करना होगा। इस आदेश में एमपी और एमएलए के अधिकारों पर ही कैंची चला दी गई।
आदेश में लिखा गया है कि यदि विधायक, सांसद अपने कोष से इन संस्थानों में उपकरण-मशीन प्रदान करते हैं तो इसके लिए उन्हें आरटीपीपी नियमों की पालना करनी आवश्यक होगी। यदि एम्बुलेंस दान में दी जाती है तो उसके लिए वाहन चालक और इंधन के 5 साल तक का खर्च भी उन्हें ही उठाना होगा।
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