झुंझुनूं जिले में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत शौचालय निर्माण कार्य बेहद धीमी गति से चल रहा है। वर्ष 2025-26 के लिए 2001 शौचालय बनाने का लक्ष्य तय किया गया था, लेकिन अब तक केवल 655 शौचालय ही बनाए जा सके हैं। इनमें से भी सिर्फ 155 शौचालयों की जियो टैगिंग हो पाई है। यानी लक्ष्य का महज 7.74 प्रतिशत कार्य ही पूरा हुआ है। इससे झुंझुनूं जिला परिषद, राज्य की 33 जिला परिषदों में 25वें स्थान पर पहुंच गई है।
राज्य भर में इस योजना के तहत 1.20 लाख शौचालय बनाए जाने हैं, लेकिन अब तक केवल 7594 शौचालयों की ही जियो टैगिंग हो सकी है, जो कुल लक्ष्य का मात्र 6.33 प्रतिशत है। झुंझुनूं जिले में यह प्रतिशत केवल 0.12 है। यहां बने 655 शौचालयों में से 500 की जियो टैगिंग नहीं हुई है। इसी वजह से लाभार्थियों को 12,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि नहीं मिल सकी है। अगर सभी वंचित लाभार्थियों को जोड़ा जाए, तो करीब 60 लाख की राशि अटकी हुई है। जब तक जियो टैगिंग नहीं होगी, भुगतान नहीं किया जा सकता। यह जिम्मेदारी ग्राम विकास अधिकारियों (वीडीओ) की होती है, लेकिन सामने आया है कि अधिकांश वीडीओ इस प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। इसी कारण जिले की रिपोर्ट बहुत खराब स्थिति में है।
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प्रशासन ने दिए सख्त निर्देश
जिला परिषद और एसबीएम समन्वयक सुमन चौधरी ने स्वीकार किया है कि जियो टैगिंग की रफ्तार धीमी है और जमीनी स्तर पर लापरवाही हुई है। अब उच्च अधिकारियों ने सख्ती दिखाई है। जिला परिषद ने सभी वीडीओ को निर्देश दिए हैं कि 7 दिनों में निर्मित शौचालयों की जियो टैगिंग पूरी करें और रिपोर्ट प्रस्तुत करें। जियो टैगिंग पूरी होते ही लंबित भुगतान जारी किए जाएंगे।
लाभार्थियों की शिकायतें बढ़ीं, वीडीओ नहीं उठा रहे फोन
झुंझुनूं जिले के चुड़ैला गांव निवासी सतपाल ने बताया कि उन्होंने अपने खर्च से शौचालय बनवाया है, लेकिन अब तक प्रोत्साहन राशि नहीं मिली। कई बार ग्राम विकास अधिकारी से संपर्क किया लेकिन हर बार टालमटोल मिला। चुड़ैला का बास गांव निवासी अमित ने कहा कि सरकार ने शौचालय बनाने को कहा, हमने बना लिए लेकिन पैसा नहीं मिल रहा। जब वीडीओ को फोन करते हैं तो वे फोन नहीं उठाते।
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क्या है यह स्कीम और जियो टैगिंग प्रक्रिया?
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत सरकार गांवों को खुले में शौच से मुक्त (ODF) बनाना चाहती है। इस योजना के तहत पात्र व्यक्तियों को शौचालय बनवाने पर 12,000 रुपये की सहायता दी जाती है। पात्रता में एससी, एसटी, बीपीएल, दिव्यांगजन, विधवा/एकल महिला, लघु और सीमांत किसान शामिल होते हैं। जियो टैगिंग एक तकनीकी प्रक्रिया है, जिसमें शौचालय की लोकेशन और फोटो को सरकारी पोर्टल पर अपलोड किया जाता है। यह प्रमाण होता है कि शौचालय वास्तव में बना है। जियो टैगिंग के बाद ही लाभार्थी को भुगतान किया जाता है।