राजधानी जयपुर के महारानी कॉलेज में तीन मजारों के कथित अवैध निर्माण को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। मंगलवार को धरोहर बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले समिति के पदाधिकारियों और स्थानीय नागरिकों ने कॉलेज के बाहर सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ किया और कॉलेज प्रशासन की सद्बुद्धि की कामना की। इस दौरान समिति ने साफ शब्दों में चेतावनी दी कि यदि 18 जुलाई को आने वाली जांच कमेटी की रिपोर्ट में उनके पक्ष में निर्णय नहीं आया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा, जिसकी पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी।
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समिति के अध्यक्ष भारत शर्मा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि जब महारानी कॉलेज की स्थापना हुई थी, तब वहां किसी तरह की कोई मजार मौजूद नहीं थी। आज अचानक कॉलेज की शैक्षणिक भूमि पर तीन मजारों का निर्माण कर लिया गया है, जो साफतौर पर अवैध अतिक्रमण है। उन्होंने इसे लैंड जिहाद करार देते हुए आरोप लगाया कि इस प्रकार के निर्माण के पीछे गहरी साजिश है, जो आगे चलकर लव जिहाद जैसी घटनाओं का माध्यम बन सकती है। भारत शर्मा ने यह भी सवाल उठाया कि जिस कॉलेज में पुरुषों की प्रवेश पर रोक है, वहां आखिरकार ये धार्मिक ढांचे कैसे और कब बन गए? उन्होंने कॉलेज प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि यह मामला छात्राओं की सुरक्षा और भविष्य से जुड़ा है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
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गौरतलब है कि यह मामला सामने आने के बाद बीजेपी विधायकों गोपाल शर्मा और बालमुकुंद आचार्य ने मजारों को कॉलेज परिसर से हटाने की मांग की थी। वहीं कांग्रेस विधायक अमीन कागजी ने मजारों को पुराना बताते हुए स्थिति को शांत रखने की अपील की थी। विवाद के बढ़ते दबाव को देखते हुए जयपुर जिला कलेक्टर ने एक जांच समिति गठित की है, जिसकी रिपोर्ट 18 जुलाई को सामने आने वाली है। भारत शर्मा ने दोहराया कि अगर रिपोर्ट में समिति की मांगों की अनदेखी की गई तो वे जयपुर की जनता और छात्राओं के साथ मिलकर सड़क पर उतरेंगे और उग्र आंदोलन करेंगे। उन्होंने कहा कि बेटियों की सुरक्षा और संस्कृति के अपमान को हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।
यहां बता दें कि जयपुर का महारानी कॉलेज, राजस्थान यूनिवर्सिटी का एक महत्वपूर्ण अंग है। यहां प्रतिवर्ष 6000 से अधिक छात्राओं का एडमिशन होता है। कॉलेज परिसर में चार गर्ल्स हॉस्टल भी हैं, जिनमें करीब 500 छात्राएं निवास करती हैं। ऐसे में इस तरह के धार्मिक निर्माण ने कॉलेज की परंपरागत संरचना और छात्राओं की सुरक्षा को लेकर व्यापक चिंता खड़ी कर दी है। अब निगाहें 18 जुलाई की रिपोर्ट पर टिकी हैं। देखना होगा कि प्रशासन इस संवेदनशील मामले में क्या निर्णय लेता है और इससे भविष्य की शैक्षणिक संस्थानों की सुरक्षा और सांस्कृतिक संरचना पर क्या प्रभाव पड़ता है।
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