रात्रि लगभग 11 बजे माता जानकी रथ में सवार होकर अपने नोहरे से रूप हरि मंदिर पहुंचीं, जहां भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के समक्ष वरमाला कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान मंदिर परिसर जय जगदीश हरे और जानकी मैया की जय के जयकारों से गूंज उठा।
15 फीट की माला बनी आकर्षण का केंद्र
वरमाला समारोह के दौरान भगवान जगन्नाथ और माता जानकी को कुल 10 से अधिक वरमालाएं पहनाई गईं। इनमें सबसे पहली और सबसे बड़ी माला कंपनी बाग से लाई गई 15 फीट लंबी माला थी, जिसे मंदिर के महंत धर्मेंद्र शर्मा द्वारा स्वयं भगवान को अर्पित किया गया। इसके बाद गुलाब, मोगरा और चांदी की मालाएं भगवान और माता को पहनाई गईं। पूरे कार्यक्रम के दौरान पंडितों ने वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए विवाह की विधि संपन्न करवाई, जिससे माहौल में आध्यात्मिक ऊर्जा और श्रद्धा की अनुभूति साफ देखी जा सकती थी।
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रूपबास की महिलाओं ने निभाई कन्यादान की परंपरा
रविवार सुबह करीब नौ बजे माता जानकी की सावरी रूपबास के लिए रवाना हुई, जहां स्थानीय लोगों ने उन्हें अपनी बेटी के रूप में स्वीकार कर कन्यादान की परंपरा निभाई। जब माता जानकी नोहरे में पहुंचीं, तो महिलाओं और पुरुषों ने रथ को कलावा बांधकर आरती उतारी। कन्यादान का यह दौर रात नौ बजे तक चला, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु सहभागी बने। यह परंपरा रूपबास के सामाजिक-सांस्कृतिक जुड़ाव और आस्था का प्रतीक बन चुकी है।
भगवान जगन्नाथ के दुर्लभ चतुर्भुज रूप के हुए दर्शन
महंत धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि इस विवाह समारोह के दौरान भगवान जगन्नाथ के चतुर्भुज रूप में दर्शन हुए, जो वर्ष में केवल एक बार इसी अवसर पर होते हैं। यह एक दुर्लभ अवसर होता है, जिससे भक्तगणों में इस आयोजन को लेकर अत्यधिक उत्साह और श्रद्धा देखी गई। लोगों ने दर्शन कर अपने को धन्य माना और पूजा-अर्चना कर परिवार और समाज के कल्याण की कामना की।
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भारत में अनोखी परंपरा, जिसमें जुटते हैं देशभर से श्रद्धालु
यह आयोजन केवल अलवर ही नहीं, भारतवर्ष के धार्मिक आयोजनों में एक अनूठा स्थान रखता है। महंत धर्मेंद्र शर्मा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ और माता जानकी का विवाह पूरे देश में केवल अलवर में ही होता है, जिस वजह से अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु इस अनूठे आयोजन का हिस्सा बनने पहुंचते हैं।
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