मिट्टी से बना घुड़ला, बालू रेत पर दीपक घुड़ला घुमाने की रस्म के दौरान बालिकाएं अपने हाथों में मिट्टी से बना घुड़ला, जिसमें कई छेद बने होते है, उसमें बालू रेत डालकर उस पर प्रज्जवलित दीपक रखती हैं। बालिकाएं इस घुड़ले को अपने हाथों में रखकर घर-घर पहुंच रही हैं। किसी घर के मुख्य द्वार पर पहुंचकर बालिकाएं घुड़ले का पारंपरिक गीत ‘म्हारो तेल बळै घी घाल घुड़लोंघूमै छै, सुहागण बाहर आय, घुड़लोघुमोछै’ का गायन करती हैं। इस दौरान घर परिवार के सदस्य घुड़ले में कुछ नकद राशि डालते हैं। होता है विसर्जन बाला गणगौर पूजन उत्सव के दौरान बालिकाएं जिस मिट्टी के पालसिये में मां गवरजा का पूजन करती हैं, पूजन उत्सव की पूर्णाहुति पर इस पूजन सामग्री का विसर्जन निर्धारित स्थलों पर किया जाता है। पालसिया व पूजन सामग्री के साथ घुड़ले का भी विसर्जन कर दिया जाता है।बाला गणगौर पूजन उत्सव की विभिन्न परंपराओं में घुड़ला का स्थान प्रमुख है। घुड़ले से संबंधित कई गीत और परंपराएजुड़ी हुई है। शीतला अष्टमी से घुड़ला घुमाने का क्रम प्रारंभ होता है। सोलह दिवसीय बाला गणगौर पूजन उत्सव में आठ दिनों तक घुड़ला की परंपरा का निर्वहन होता है।
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अनूठी परंपरा – यहां घुड़ला लेकर घर-घर पहुंचती है बालिकाएं | Unique tradition – Here girls go from house to house with Ghudla

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