धीरे धीरे घटता जा रहा है पश्चिमी राजस्थान का मेवा फोग | The dry fog of western Rajasthan is gradually decreasing

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प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर फोग के फलों और फूलों में 18% प्रोटीन एवं 71 % से अधिक कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पाई जाती है, जो ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। फोग का पौधा अत्यंत सूखे और पाले दोनों ही परिस्थितियों में जीवित रह सकता है, इसकी यही खासियत ही इससे थार के अनुकूल बनाती है। राजस्थान के मरुस्थल में उगने वाला यह औषधीय पौधा कई मायने में फायदेमंद है। यह पौधा स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए लाभदायक होता है। फोग की लकड़ी को ईंधन के रूप में काम लिया जाता है। हवन में भी उपयोगी वहीं इसका उपयोग राजस्थान में शुभ कार्यों के लिए किये जाने वाले हवन भी अब भी किया जा रहा है। जिसे समिधा कहा जाता है। हालांकि अब फोग के पौधे पश्चिमी राजस्थान से लगातार घटते जा रहे है। इसकी झाड़ी को बढ़ने में सात से आठ साल का समय लग जाता है। जिस गति से यह पौधा विलुप्त हो रहा है,उस गति से यह बढ़ नहीं पा रहा है। पश्चिमी राजस्थान में फोग के पर्यावरणीय एवं औषधीय मूल्यों को समझते हुए इसका संरक्षण बेहद आवश्यक है।

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