Bikaner: बारीक कारीगरी के लिए देश-विदेश में मशहूर है बीकानेर में बनी काठ की गणगौर, कीमत जानकर रह जाएंगे दंग

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Bikaner: बारीक कारीगरी के लिए देश-विदेश में मशहूर है बीकानेर में बनी काठ की गणगौर, कीमत जानकर रह जाएंगे दंग

बीकानेर में तैयार की जाने वाली काठ (लकड़ी) की गणगौर और ईसर की मूर्तियां देश-विदेश में अपनी बारीक कारीगरी के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां के कारीगर इतनी नफासत से गणगौर का शृंगार और स्वरूप गढ़ते हैं कि देखने वालों को यह सजीव प्रतीत होती है। जिस भी परिवार में यह गणगौर जाती है, वहां पूजा के दौरान ऐसा आभास होता है कि गणगौर का नाक-नक्श परिवार की महिलाओं से मेल खाता है। यही कारण है कि प्रवासी राजस्थानी बीकानेर की गणगौर विशेष रूप से खरीदना पसंद करते हैं।

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तीन हजार से पांच लाख तक है कीमत

गणगौर निर्माण में माहिर कारीगर शिव जांगिड़ बताते हैं कि इस बार उन्होंने एक विशेष ऑर्डर पर आदमकद गणगौर तैयार की है, जिसकी कीमत पांच लाख रुपये है। गणगौर की कीमत उसकी लकड़ी की गुणवत्ता और सुंदरता पर निर्भर करती है। बाजार में तीन हजार रुपये से लेकर लाखों रुपये तक की गणगौर उपलब्ध है। सस्ती गणगौर फोग, रोहिड़ा और पाइन की लकड़ी से बनाई जाती है, जबकि महंगी गणगौर सागवान की लकड़ी से तैयार होती है। विशेषज्ञों के अनुसार सागवान की गणगौर का रंग 10 से 15 साल तक फीका नहीं पड़ता और यह अधिक टिकाऊ होती है।

देशभर में बढ़ती मांग

गणगौर की सुंदरता और शिल्पकला के कारण इसकी मांग साल-दर-साल बढ़ रही है। बीकानेर निवासी जयश्री जोशी बताती हैं कि शिव-पार्वती की ये मूर्तियां इतनी वास्तविक प्रतीत होती हैं कि लोग इसे देखते ही मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि अब शिव पार्वती की यह जोड़ी हमारे घर की शोभा बढ़ाएगी। बीकानेर की गणगौर की मांग इतनी अधिक है कि कारीगर महीनों पहले से इसकी तैयारियों में जुट जाते हैं। दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, अहमदाबाद और सूरत जैसे महानगरों में बसे प्रवासी राजस्थानी दो महीने पहले से ही ऑर्डर दे देते हैं।

कई कारीगरों की मेहनत से बनती है गणगौर

गणगौर कारीगर शिव जांगिड़ का कहना है कि गणगौर बनाना बहुत मेहनत का काम है, जिसमें कई कुशल कारीगरों का योगदान होता है। छोटी मूर्तियों को तैयार करने में 10 से 15 दिन लगते हैं, जबकि आदमकद गणगौर को बनाने में तीन से चार महीने का समय लगता है। मूर्ति के विभिन्न हिस्सों जैसे चेहरे, हाथ और पोशाक को तैयार करने के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ कारीगरों की जरूरत पड़ती है। कोई चेहरे के नाक-नक्श को तराशने में माहिर होता है, तो कोई उसे संवारने और रंग-रोगन करने में।

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सौ साल पुरानी गणगौर भी मौजूद

बीकानेर में ऐसी कई गणगौर प्रतिमाएं हैं, जो सौ साल से अधिक पुरानी हैं। यहां गणगौर को देवी का स्वरूप मानकर उसकी विशेष देखभाल की जाती है। बीस दिनों तक चलने वाले इस पर्व के बाद गणगौर को सहेजकर सुरक्षित स्थान पर रख दिया जाता है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस परंपरा से जुड़ी रहें।

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