आनंदगढ़ गांव से बॉर्डर महज 4 किलोमीटर ही दूर है। गांव से पश्चिम की तरफ थोड़ा चलने पर तारबन्दी नजर आने लग जाती है। एक तरफ भारत है, तो उस पार नापाक पाकिस्तान है। वर्ष 1971 में पाकिस्तान से आए यह लोग अब भारत के स्थायी नागरिक बन चुके हैं। खास बात यह है कि गांव के लोग जागरूक हैं। कुछ लोग भारतीय सेना, अर्द्ध सैनिक बल तथा भारतीय दूतावास में कार्य कर चुके हैं तथा कुछ अभी कर रहे है। चौपाल में पुरानी यादें और वर्तमान हालात पर चर्चा पत्रिका टीम गांव के बीच पहुंची, तो चौपाल में ग्रामीण हथाई करते मिले। उन्होंने बताया कि किस तरह से 1971 में अपनी जन्मभूमि छोड़ कर भारत आना पड़ा। उस समय शरीर पर पहने कपड़ों के अलावा कुछ नहीं था। भाजपा नेता कुन्दन सिंह बताते हैं कि यह पूरा क्षेत्र पहले निर्जन था। पाक से आए हिन्दुओं ने अपनी मेहनत से इसे आबाद किया है। लोग बताते हैं कि पाकिस्तान में उनके साथ हमेशा दुश्मन जैसा व्यवहार किया जाता था। ऐसे में इज्जत की जिन्दगी जीने के लिए भारत आ गए। अब हमारा अपना देश यही है। यहां आकर समझ में आया कि सच में पाक दुश्मन देश है। दुश्मन आंख उठाएगा, तो हम करारा जवाब देंगे। जागीरदारी छोड़कर नई शुरुआत की गांव के युवा हाकमदान चारण बताते हैं कि हमारे बुजुर्गों ने अपने धर्म के लिए पाकिस्तान छोड़ा। वहां जागीरदारी छोड़कर भारत आ गए। जमीनें, घर, धन दौलत और पशुधन को वहां छोड़कर रातोंरात सिर्फ इस उमीद से आए कि नई शुरुआत करेंगे। यहां आकर जो माहौल मिला, उसके बलबूते आज फिर अपने पैरों पर खड़े हो गए है। उगमदान बताते हैं कि वर्ष 1971 में बिग्रेडियर भवानी सिंह ने सिंध व छाछरे पर कब्जा कर लिया था। उस समय बाड़मेर-जैसलमेर के कलक्टर कैलाश उज्वल ने एक साल तक पाकिस्तान के हिस्से पर कब्जा रखा। बाद में शिमला समझौता के तहत जमीन वापस पाक को दे दी। 55 साल पुरानी कहानी… बुजुर्गों की जुबानी बुजुर्ग नरसदान ने बताया कि वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना पाकिस्तान में काफी अन्दर तक चली गई थी। ऐसा माहौल बन गया कि पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू भारत आ जाएं। वैसे भी ज्यादातर हिन्दू रिश्तेदार उस समय विभाजन के बाद भारत की तरफ ही रह गए थे। ऐसे में अपना सुब कुछ छोड़कर यहां आए, लेकिन अब बहुत खुश हैं। गेमरदान चारण ने बताया कि उनका जन्म पाकिस्तान में हुआ था। महज 8 वर्ष की उम्र में युद्ध के दौरान परिवार भारत आया। पहले 13 साल तक बाड़मेर में राहत शिविर में रहे। शिक्षा ग्रहण की और एसएसबी में 27 साल कार्य किया। सेवानिवृत होने के बावजूद गेमरदान कहते हैं कि देश को जरूरत होगी तो वह अब भी बन्दूक उठाकर दुश्मन से लडऩे को तैयार हैं। लीलदान बताते हैं कि वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भी गांव के लोगों ने एकता दिखाई। सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर डटकर खड़े रहे। यह भी पढ़ें राजस्थान में यहां चला 5 करोड़ की जमीन पर बुलडोजर, 20 साल से पूर्व BJP जिलाध्यक्ष ने कर रखा था अतिक्रमण
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पाक विस्थापित बोले- ‘अब बहुत हुआ’, पहलगाम आतंकी हमले के बाद बॉर्डर पर सीना ताने खड़ा 4 KM दूर ये गांव | BIKANER 75% residents of a village 4 KM away from border are Pak displaced said afteR Pahalgam terrorist attack

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