किसी मंदिर का निर्माण हो तो उसमें पत्थरों के अतिरिक्त अन्य सामग्री की आवश्यकता होती है। पत्थरों को एक-दूसरे से जोड़े रखने के लिए सीमेंट, चूना आदि का उपयोग किया जाता है। वहीं राजस्थान के वागड़ अंचल के डूंगरपुर में एक ऐसा अनूठा शिव मंदिर देवसोमनाथ है, जिसके गर्भगृह में दो शिवलिंग हैं और यह बिना किसी योजक सामग्री के निर्मित है। सम्पूर्ण मंदिर सफेद पत्थरों के खण्डों के जोड़ से निर्मित है। इसी विशिष्टता के कारण भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग इसकी देखरेख करता है।
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देवसोमनाथ मंदिर।
– फोटो : अमर उजाला
डूंगरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 24 किलोमीटर दूर सोम नदी के तट पर देव सोमनाथ का भव्य मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि सोम नदी के तट पर स्थित होने के कारण मंदिर का नामकरण देव सोमनाथ हुआ होगा। यह मंदिर गुजरात के पुराने सोमनाथ मंदिर की प्रतिकृति जैसा है और मालवा शैली में बना हुआ है। इसका निर्माण 12वीं सदी में तत्कालीन शासक अमृतपाल ने करवाया था। यह पूरा मंदिर पत्थरों पर पत्थर रखकर बनाया गया है।
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तीन मंजिला देवसोमनाथ मंदिर।
– फोटो : अमर उजाला
तीन प्रवेश द्वार, तीन मंजिला मंदिर
वागड़ में भगवान शिव का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो तीन मंजिला है। तीन प्रवेश द्वारों वाले इस मंदिर के चारों तरफ ऊंची प्राचीर बनी हुई है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में तथा शेष दोनों प्रवेश द्वार उत्तर एवं दक्षिण दिशा में है। पश्चिमी भाग में सोम नदी है। मंदिर में विशाल सभा मंडप है, जिसके स्तंभ और तोरण कलात्मक हैं। सभा मंडप के शिखर का आंतरिक वलयाकार भाग पर अनूठी कलाकारी की गई है, जो यहां की शिल्प कला के दिग्दर्शन कराती है।
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12वीं सदी की धरोहर।
– फोटो : अमर उजाला
गर्भगृह में दो शिवलिंग
मंदिर के सभा मंडप के मध्य में सफेद पत्थर की नंदी की प्राचीन प्रतिमा है। गर्भगृह के प्रवेश द्वार के बाहरी हिस्से में प्रतिमाएं उकेरी गई हैं। प्रवेश द्वार की दीवारों पर शिलालेख उत्कीर्ण है। गर्भगृह भूमि तल से 2.7 मीटर नीचे स्थित है। गर्भगृह में दो शिवलिंग हैं। गर्भगृह की दीवारों पर शिव परिवार से सम्बंधित देवी-देवताओं एवं नाग की प्रतिमाएं हैं। बताते हैं कि मंदिर में जल व्यवस्था के लिए सोम नदी से सफेद पाषाण की जल प्रवाहिका थी, जो 1875 में सोम नदी में आई बाढ़ के कारण क्षतिग्रस्त हो गई थी।
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पत्थर पर पत्थर रखकर कराया गया निर्माण।
– फोटो : अमर उजाला
समय-समय पर जीर्णोद्धार
मंदिर से प्राप्त शिलालेख इसके इतिहास की जानकारी देते हैं। डूंगरपुर के तत्कालीन महारावल गोपीनाथ से संबंधित शिलालेख में मंदिर के जीर्णोद्धार का उल्लेख है। महारावल गंगादास से संबंधित शिलालेख में तोरण के निर्माण का उल्लेख है। महारावल सेसमल से संबंधित शिलालेख में मंदिर की व्यवस्थाओं का उल्लेख है। इस मंदिर पर मुगल आक्रान्ता अहमदशह अब्दाली की सेना ने भी तोड़फोड़ की थी। मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह के राज्याभिषेक के समय डूंगरपुर के महारावल की अनुपस्थिति के कारण वागड़ की सेना के बीच सोम नदी के किनारे युद्ध का भी यह मंदिर साक्षी रहा है।
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