केशव ने रींगस के प्राचीन श्याम मंदिर से अपनी यात्रा शुरू की और बुधवार देर शाम खाटूश्यामजी मंदिर पहुंचकर बाबा के दर्शन किए। इस पूरी यात्रा को पूरा करने में उन्हें करीब 27 घंटे लगे। जंजीरों से बंधे शरीर के साथ यह यात्रा न केवल शारीरिक रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण थी, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक दृढ़ता का भी प्रमाण थी। केशव का जीवन बचपन से ही संघर्षों से भरा रहा। जब वह केवल 9 साल का था, तब उसके माता-पिता ने अलग-अलग विवाह कर लिए और उसे बेसहारा छोड़ दिया। ऐसे समय में उसने बाबा श्याम को अपना सहारा बनाया और तभी से उनके प्रति उसकी आस्था और समर्पण लगातार गहराता गया। वर्तमान में वह नैनीताल के पास एक कस्बे में पानी की बोतल बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता है।
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पिछले 12 वर्षों से वह बाबा श्याम का भक्त है। पहली बार 9 वर्ष की उम्र में खाटू आया था और तब से जब भी मन करता है, बाबा के दरबार में पहुंच जाता है। एक बार जब उसके पास पैसे नहीं थे, तब वह साइकिल से ही खाटू के लिए रवाना हो गया था। अब उसकी जंजीरों में बंधी यात्रा सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा में है।
बाबा श्याम के दर्शन के बाद केशव ने मांसाहार के विरोध में एक भावुक अपील भी की। उन्होंने बताया कि हल्द्वानी में भजन कार्यक्रम में जाते वक्त रास्ते में उन्होंने देखा कि लोग खुलेआम मांस काट रहे थे। इस दृश्य से आहत होकर उन्होंने लोहे की जंजीरें पहनकर बाबा श्याम से प्रार्थना की कि भारतवर्ष में जानवरों की हत्या बंद हो और मोदी सरकार से भी मांसाहार पर रोक लगाने की मांग की। खाटूश्यामजी को हारे का सहारा कहा जाता है और केशव सक्सेना की यह यात्रा इस कहावत को सार्थक करती है। माता-पिता भले ही साथ छोड़ गए हों, लेकिन बाबा श्याम ने केशव को अपनाया, यही उसके जीवन की सबसे बड़ी विजय है।
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