पश्चिम बंगाल के इस मंदिर में पहली बार मिली दलितों को एंट्री, 16 सीढ़ियां चढ़ तोड़ दीं जातिवाद क

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West Bengal News: पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्द्धमान जिले में दलित परिवारों को मंदिर में प्रवेश से इनकार के बीच बुधवार (12 मार्च 2025) को जिले के कटवा उपखंड का एक गांव किले में तब्दील हो गया. थोड़ी देर में देखते ही देखते गिधग्राम गांव के दलितों का एक ग्रुप स्थानीय गिधेश्वर मंदिर में प्रवेश करने लगा. दलितों इस इस समूह को उम्मीद है कि ऐसे में अब सदियों से चले आ रहे भेदभाव का अंत होगा.
मंदिर समिति लगे भेदभाव के आरोप
पूर्व बर्धमान जिले के गिधग्राम गांव में रहने वाले दलित लोगों की लंबे समय से ये शिकायत रही है कि उन्हें मंदिरों में घुसने नहीं दिया जाता है. वे कई बार मंदिर समिति पर भी भेदभाव का आरोप लगाते रहे हैं. इस बीच बुधवार को मंदिर में प्रवेश करने वाली पूजा दास ने बताया कि मंदिर में एंट्री करने वाले पांच लोगों में वह भी थीं. उन्हें उम्मीद है कि गांव के दलित अब मंदिर में पूजा-अर्चना जारी रख सकेंगे.
16 सीढ़ियां चढ़ तोड़ दीं जातिवाद की जंजीरें
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पूजा दास ने कहा, “हमारे पूर्वजों को कभी पूजा-पाठ की अनुमति नहीं दी गई, लेकिन अब हम शिक्षित हैं और समय बदल गया है, इसलिए हमने पुलिस और प्रशासन से अपील की. हम आखिरकार अपना अधिकार पाने में कामयाब रहे. मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने के लिए हमने जो 16 सीढ़ियां चढ़ीं, उससे पीढ़ियों से चला आ रहा भेदभाव खत्म हो गया.” गांव के एक अन्य दलित निवासी लक्खी ने कहा कि उन्होंने पहली बार गांव के मंदिर में भगवान की मूर्ति को अपनी आंखों से देखा.
शांतनु दास (45 साल), लक्खी दास (30 साल), पूजा दास (27 साल) और षष्ठी दास (45 साल) ये सभी गांव के 550 दलितों में से हैं, जिन्हें गांव में पैर रखने की अनुमित नहीं थी. इस घटना का खुलासा तब हुआ जब गांव के दलितों ने जिला प्रशासन को पत्र लिखकर भेदभाव को उजागर किया.इसके बाद पुलिस और नागरिक स्वयंसेवकों ने पांच दलितों को मंदिर तक पहुंचाया. मंदिर में, उन्होंने एक घंटे तक प्रार्थना की. इस दौरान पूरे इलाके को पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स ने घेर रखा था.
‘हमें पीढ़ियों से भगा दिया जाता था’
मंदिर में एंट्री करने वाली षष्ठी दास ने कहा, “हमारे लिए यह एक ऐतिहासिक दिन है, क्योंकि इतिहास में पहली बार हमें इस मंदिर में पूजा करने का अधिकार मिला है. जब भी हम मंदिर के पास जाते थे, तो हमें पीढ़ियों से भगा दिया जाता था. पिछले साल भी मैं प्रार्थना करने आया था, लेकिन उन्होंने मुझे सीढ़ियों पर चढ़ने की भी अनुमति नहीं दी, लेकिन आज मैं गांव में शांति की उम्मीद करता हूं.”
कटवा की एसडीओ अहिंसा जैन ने बताया, “इस तरह के भेदभाव की अनुमति नहीं दी जा सकती. हमने इस बात को ध्यान में रखते हुए कई बैठकें कीं. इसमें यह एक संवेदनशील मुद्दा है और आखिरकार इसमें शामिल लोगों को मना लिया गया.” माना जाता है कि गिधेश्वर शिव मंदिर करीब 200 साल पुराना है.
प्रशासन ने नेताओं और स्थानीय लोगों के साथ की बैठक
स्थानीय दलितों के अनुसार वे दशकों से मंदिर में प्रवेश के अपने अधिकार के लिए असफल संघर्ष कर रहे हैं. पिछले महीने महाशिवरात्रि से ठीक पहले उन्होंने जिला प्रशासन, खंड विकास अधिकारी और जिला पुलिस को पत्र लिखकर दलितों के मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की थी. हालांकि उनकी दलीलों के बावजूद उन्हें त्योहार के दौरान मंदिर से बाहर रखा गया. इसके बाद 28 फरवरी 2025 को सब-डिविजनल ऑफिसर ने दासपारा के निवासियों, मंदिर समिति, स्थानीय विधायक, टीएमसी के अपूर्व चौधरी और बीडीओ की एक बैठक बुलाई.
हर किसी को पूजा करने का अधिकार- प्रशासन
इस बैठक में लिए गए प्रस्ताव में कहा गया, “इस तरह के भेदभाव संविधान में प्रतिबंधित है. हर किसी को पूजा करने का अधिकार है. दास परिवारों को कटवा 1 ब्लॉक के अंतर्गत गिधग्राम में गिधेश्वर शिव मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी.” अधिकारियों के अनुसार, 11 मार्च को हुई बैठक के बाद ही इस प्रस्ताव को अमल में लाया जा सका. कटवा की एसडीओ अहिंसा जैन ने बताया, “इस तरह के भेदभाव की अनुमति नहीं दी जा सकती. हमने इस बात को ध्यान में रखते हुए कई बैठकें कीं. इसमें यह एक संवेदनशील मुद्दा है और आखिरकार इसमें शामिल लोगों को मना लिया गया.”
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