Opinion: ‘आस्था, भावुकता और चेतना शून्य…’, आखिर भारत में ही क्यों होती सबसे ज्यादा भगदड़ की घटनाएं

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<p style="text-align: justify;">भारत में भगदड़ की घटनाओं का एक इतिहास है. कुछ साल पहले जब मैंने इस पर शोध किया तो ये पाया कि दुनिया में सबसे ज्यादा भगदड़ की घटनाएं भारत में होती हैं. दूसरी बात मैने ये पाया कि धार्मिल स्थलों पर भगदड़ की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं. औसत के हिसाब से लगभग 90% से ज्यादा घटनाएं धार्मिल स्थलों पर होती है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">ये धार्मिक स्थलों पर होने की क्या वजह है? स्टेशन पर भी भगदड़ हुई क्योंकि जिस कार्यक्रम में जाने की तैयारी लोग कर रहे थे, वो भी उसी से जुड़ी हुई बात है. कुछ घटनाएं ऐसी भी हुईं हैं जो राजनीतिक रैलियों में हुई. एक दो घटनाएं ऐसी मिलती हैं. लेकिन जो धार्मिक स्थलों पर घटनाएं हो रहीं हैं, उसे बहुत ही गंभीरता से समझने की जरूरत है कि आखिर ऐसी घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">यूपी के हाथरस में भी हमने देखा की कितनी बड़ी घटना हुई थी. उससे पहले हमलोगों एक घटना और देखी जो धार्मिक घटनाओं से अलग थी, वह घटना सिनेमा घर की थी और वो घटना दक्षिण में हुई थी. अब इसका भी सम्बन्ध है. जो धार्मिक स्थल हैं और सिनेमा के जो दर्शक हैं, दोनों जगहों पर क्यों एक तरह की घटनाएं हो रही हैं?</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>आस्था और धर्म का घालमेल</strong></p>
<p style="text-align: justify;">मेरी इसमें जो समझ है उसके मुताबिक, जब आपकी चेतना अंधविश्वास में बदल जाती है, कोरी भावुकता में बदल जाती है, उसमें कोई तर्क, &nbsp;विज्ञान या फिर समझदारी की जगह नहीं होती है कि जो बात हम धर्म के नाम पर कर रहे हैं, क्या वाकई में वो धर्म है भी या नहीं.</p>
<p style="text-align: justify;">यानी धर्म आपको अतार्किक नहीं बनाएगा. लेकिन, यहां पर हम जिस धर्म का रुप देख रहे हैं, वो आपको अतार्किक बना रहा है. अवैज्ञानिक बना रहा है. जाहिर सी बात है कि इस पर हम सभी को गंभीरता से सोचना होगा. मैं तो मानता हूं कि जिस तरह की समाजिक स्थितियां बन रही हैं वैसी स्थिति में भगदड़ की घटनाएं और ज्यादा हो सकती है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">ये सिर्फ कुप्रबंधन का ही मामला भर नहीं है. मुझे हैरानी होती है कि इतनी भगदड़ की घटनाएं हुईं, लेकिन हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि हमारी कई तरीके की प्रतिक्रियाएं बेहद ही अमान्य हो गई हैं, जैसे- मर गए तो क्या हुआ, 25 लाख रुपये सरकार तो दे रही है. इस तरह की टिप्पणी वो भी उस वक्त जब हादसे में बड़ी संख्या में लोग मर रहे हों, तो भला ऐसी प्रतिक्रिया क्या आनी चाहिए?</p>
<p style="text-align: justify;">जिस तरह की प्रयागराज में घटना हुई, उसके बावजूद लोगों का न सिर्फ जाना बल्कि उसी रफ्तार में जाना, ऐसे में देख लीजिए दिल्ली की घटना अब आपके सामने हैं. मैं इस बात से चिंतिंत हूं कि आखिर लोगों का विवेक और उसकी चेतना क्या उल्टी दिशा में जा रही है?</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>विवेक पर सवाल</strong></p>
<p style="text-align: justify;">अगर लोगों की चेतना वाकई उल्टी दिशा में जा रही है तो उसके कौन से कारण हैं, वो भी हमें समझना होगा. एक बात हमें समझनी होगी कि हमने बहुत मुश्किल से लोकतंत्र को हासिल किया है. अपने अधिकारों को बहुत जद्दोजहद के बाद हासिल किया है.</p>
<p style="text-align: justify;">हम गुलामी की मानसिकता में जीते थे और उससे निकलकर आजादी के बाद स्वतंत्रता की मानसिकता में आए हैं. ऐसे में अगर स्वतंत्रता की ये मानसिकता हमें किसी भी तरह की गुलामी की ओर लेकर जा रही है तो जरूर ये चिंतनीय बात है. इस समाज के लिए चिंता की बात है. इस पर सभी को सोचना पड़ेगा.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">पहले ये लोग सोचते थे कि बूढ़े-बुजुर्ग लोग धार्मिक स्थलों पर जाते हैं. वे अपनी जीवन के उद्देश्य ये फिर जीवन के कर्मों को करने के बाद धार्मिक यात्राओं पर निकलते हैं. लेकिन आज क्या हो रहा है? नई पीढ़ी के बच्चे बड़ी तादाद में जा रहे हैं. &nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">क्यों जा रहे हैं? ये सवाल तो हमारे सामने बनता है. मैं समझता हूं कि ये जो घटनाएं हो रही हैं, उस पर हमें गौर करना चाहिए. केवल जांच समितियों को बनने से कोई बात नहीं बनती है. जांच समितियां नाशिक में भी बनी थी. नाशिक कुंभ के दौरान भी बड़ी घटना हुई थी.</p>
<p style="text-align: justify;">ये बहुत पुरानी बात है. जब मैंने शोध किया तो ये पाया कि हादसे हुए, समितियां बनीं. लेकिन क्या कोई ऐसी जांच समिति बनाई या फिर उसने अनुशंसाएं दीं ताकि भविष्य में ऐसी घटना न हो. जांच समितियां सिर्फ एक औपचारिकता हो जाए, तो फिर उस जांच समिति का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. &nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">जब नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ये घटना हो जाए, जिसे दुनिया के बेस्ट स्टेशन बनाने की कोशिश की जा रही है, तो ये बेहद चिंतनीय है. ऐसे में मैं ये मानता हूं कि भगदड़ की घटनाओं पर देश, समाज को सोचना चाहिए और ये एक राजनीतिक प्रश्न भी है. इस पर अगर गंभीरता से विचार नहीं किया तो फिर अपने विवेक और चेतना से नहीं रोक पाएंगे.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]&nbsp;</strong></p>

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