नौकरियों की कमी, राजनीति में अमीरों का प्रभाव या फिर भेदभाव, आखिर भारत में क्यों बढ़ रही गरीबी?

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Pew Research Report On Economic Gap: प्यू रिसर्च सेंटर की ताजा रिपोर्ट ने भारत में अमीर और गरीब के बीच के फासले को लेकर गहरी चिंता का संकेत दिया है. इस रिपोर्ट के अनुसार, 81% भारतीय मानते हैं कि देश में आर्थिक असमानता एक गंभीर समस्या है, जिसमें से 64% लोगों ने इसे बहुत बड़ी समस्या कहा.
यह सर्वेक्षण एशिया-प्रशांत, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, लैटिन अमेरिका, मध्य पूर्व और उप-सहारा अफ्रीका के 36 देशों में किया गया था, जिसमें कुल 41,503 लोगों से बातचीत की गई. अकेले भारत में यह आंकड़ा सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था के प्रति आम नागरिक की बढ़ती असंतोष को दर्शाता है.
आर्थिक असमानता की वजह क्या है?
जब पूछा गया कि आर्थिक असमानता के पीछे सबसे बड़ी वजह क्या है तो भारतीयों ने कई प्रमुख कारणों की ओर इशारा किया. 79% लोगों ने राजनीति में अमीरों का अत्यधिक प्रभाव को आर्थिक असमानता का एक बड़ा कारण बताया. इसके अलावा 73% ने माना कि टेक्नोलॉजी और मशीनों के कारण नौकरियों में गिरावट आई है. 72% लोगों ने माना कि शिक्षा तक पहुंच में भेदभाव है. 56% ने जातीय और नस्लीय भेदभाव को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया. 65% उत्तरदाताओं ने जन्म आधारित अवसरों की असमानता को भी आर्थिक असमानता की वजह बताई. इसे साफ है कि भारत में आर्थिक असमानता केवल धन के वितरण तक सीमित नहीं है, बल्कि शैक्षणिक, सामाजिक और राजनीतिक ढांचे से भी गहराई से जुड़ी हुई है.
धार्मिक और जातीय भेदभाव: सामाजिक ताने-बाने में दरार? 
रिपोर्ट के अनुसार, 71% भारतीय धार्मिक भेदभाव को एक गंभीर सामाजिक समस्या मानते हैं, जिनमें से 57% ने इसे “बहुत बड़ा” और 14% ने इसे मध्यम रूप से बड़ा बताया. वहीं, 69% लोगों ने जातीय और जातिगत भेदभाव को भी गंभीर चुनौती के रूप में स्वीकार किया. सर्वे के वैश्विक आंकड़ों के अनुसार औसतन केवल 29% वयस्कों ने धार्मिक भेदभाव को बहुत बड़ी समस्या माना, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत में यह चिंता वैश्विक औसत से कहीं अधिक गंभीर है.
भारतीय आर्थिक व्यवस्था में विश्वास की कमीजब भारतीयों से पूछा गया कि क्या मौजूदा आर्थिक व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है तो उत्तरदाताओं के जवाब चौंकाने वाले निकले, जिसमें 39% ने कहा कि पूरी व्यवस्था में सुधार की जरूरत है और 34% ने बड़े बदलाव की मांग की. इसका सीधा अर्थ यह है कि देश की आर्थिक नीतियों, संसाधनों के वितरण और सामाजिक सुरक्षा तंत्र में आमजन का विश्वास डगमगाता नजर आ रहा है. 

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